Atmadharma magazine - Ank 281
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : २४९३ आत्मधर्म : ३प :
लईने हुं तेमनुं स्वागत करुं छुं. एक सामान्य महेमान आंगणे पधारे तोपण लोको
शोभा–शणगार ने स्वच्छता करे छे; अहीं तो साधक अनंत सिद्ध भगवंतोने आंगणे
पधरावे छे,
–तो तेना ज्ञानमां केटली स्वच्छता होय? रागनी मलिनतानो ज्यां आदर होय त्यां ते
मलिन आंगणामां सिद्ध भगवंतो न पधारे; रागथी भिन्न अंतर्मुख थयेलुं जे
स्वसंवेदनरूप पवित्र ज्ञान, ते ज्ञानना आंगणाने सम्यग्दर्शन वडे शोभावीने धर्मीजीव
अनंत सिद्ध भगवंतोने पोताना आंगणे पधरावे छे, तेमनुं स्वागत करे छे एटले के
शुद्धआत्मानो ज आदर करे छे.–आ साधकदशानुं अपूर्व मंगळ छे. संसार ते विकार छे
ने मोक्ष ते पूर्ण शुद्धता छे; एवी शुद्धताने पामेला सिद्ध भगवंतो स्वानुभूतिरूप
आनंदनी अनुभूतिथी प्रकाशमान छे. ते सिद्ध भगवंतोने हुं मारा शांतिना स्वयंवरमां,
एटले के मुनिदशाना महोत्सवमां आमंत्रीने तेमनुं स्वागत करुं छुं एटले के हुं मारा
आत्मामां वीतरागी समभावरूप चारित्रदशा प्रगट करुं छुं–एम कहीने प्रवचनसारमां
आचार्यदेवे अपूर्व मांगळिक कर्युं छे.
हे सिद्धो, हे पंच परमेष्ठि भगवंतो! शुद्धोपयोगी चारित्रदशारूप जे मोक्षनो
महोत्सव–तेमां आप पधारो, आपने साक्षीरूपे साथे लईने हुं मोक्षने साधवा नीकळ्‌यो
छुं, तेथी मारी मोक्षपरिणतिमां वच्चे विघ्न आववानुं नथी.
जे ज्ञाने अनंत सर्वज्ञ–सिद्धोने पोतामां स्थापीने तेमनुं स्वागत कर्युं ते ज्ञान
रागथी जुदुं पड्युं ने आनंदरूप थयुं. हुं सिद्धने वंदन करुं छुं एटले तेना जेवा
शुद्धात्मानो ज आदर करुं छुं ने एनाथी विरुद्ध कोई भावनो आदर करतो नथी. हे
श्रोताओ! मारा ने तमारा आत्मामां हुं सिद्धने स्थापुं छुं: पधारो प्रभु पधारो! अमारा
ज्ञाननुं लक्ष सिद्धपद प्राप्त करवा उपर छे, वच्चे रागनो के संयोगनो आदर नथी;
अमारा ज्ञाननी परिणति हवे सिद्धस्वरूप तरफ ज ढळशे.–आम सिद्धस्वरूपने ध्येयपणे
राखीने आ समयसार हुं कहुं छुं ने तमे पण एवा ज ध्येये तेनुं श्रवण करजो. आ रीते
जे समयसार सांभळे तेनो मोक्ष थया वगर रहे नहि. तेने सम्यग्दर्शनादि अपूर्व
साधकभावनी शरूआत थाय छे, ते मांगळिक छे. आ रीते जयपुरमां सिद्धोना
स्वागतरूप मंगळ कर्युं.