Atmadharma magazine - Ank 281
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : २४९३ आत्मधर्म : ४७ :
–: यात्रानो कार्यक्रम:–
जयपुरथी महावीरजी, बयाना, (रात्रे आग्रा, फिरोजाबाद थईने) ईटावा,
कानपुर, अल्लाहाबाद, बनारस, डालमियानगर अने शिरघाट थईने ता. २४ नी
सवारे शिखरजी–मधुवनमां पहोंचशे. ने ता. २९ सुधी त्यां बिराजशे. तीर्थनी
मंगलयात्रा गुरुदेव साथे अष्टाह्निकापर्वना अंतिम दिवसे फागण सुद पूर्णिमा ता. २६
ना रोज थशे. (अगाउ यात्रानी तारीख पचीसमी जाहेर थयेल, तेने बदले ता.
छवीसमी राखवामां आवी छे.)
शिखरजीनी यात्रा पछी पावापुरी वगेरेनी यात्रा तेमज कलकत्ता (चार दिवस),
रांची (बे दिवस) बीजा गामो थई दिल्ही (चार दिवस)–वगेरे कार्यक्रमो नक्की
करवामां आव्या छे.
वीतरागी मोक्षमार्गकी ललकार करते हुए सन्त कहते है
कि अरे, रागको धर्म माननेवाले कायरो! तुम चैतन्यके
वीतरागमार्गमें चल नहीं सकोगे। स्वाधीन चैतन्यका तुम्हारा
पुरुषार्थ कहां चला गया? यदि तुम धर्म करना चाहते हो तो
चैतन्यशक्ति की वीरता तुम्हारेमें प्रगट करो। इस वीतरागी
वीरताके द्वारा ही मोक्षमार्ग सधेगा।
वीतरागी सन्तोंकी ऐसी ललकार सुनके कौन नहीं