परभावोने फरीफरीने भोगवी चूक्यो छे,
संसारसंबंधी बधाय दुःख–सुख ए भोगवी चूक्यो
छे, पोताना स्वरूपनुं वास्तविक सुख एक
क्षणमात्र तेणे भोगव्युं नथी...के जे सुखनी पासे
जगतना बधा ईन्द्रियसुखो अत्यन्त नीरस छे.
ईन्द्रियसुखोथी आत्मिकसुखनी जात ज जुदी छे,–
जेम ईन्द्रियो अने आत्मा जुदा छे तेम.–हे जीव!
ज्ञानस्वभावना अवलंबनथी सम्यग्दर्शननो
प्रयत्न करीने स्वानुभूतिमां तारा आ सुखने तुं