निर्णय करे छे, पछी ते निर्णयना बळे अनुभव थाय छे.
अपेक्षा वगर ज्ञानमां सीधो आत्माने पकडवा मांगे छे, एटले के
आत्माने स्वसंवेदन–प्रत्यक्ष करवा मांगे छे; ते माटे निर्णय कर्यो छे
के मारो स्वभाव ज स्वसंवेदन–प्रत्यक्ष थवानो छे, तेमां वच्चे
रागनो पडदो रही शके नहीं. आत्माने प्रत्यक्ष करवानी रागमां
माटे रागनी ओथ लेवी पडे एम नथी. आटला निर्णय सुधी
आव्या पछी हवे साक्षात् अनुभव माटे शिष्योनो उद्यम छे. तेनुं
सरस वर्णन आचार्यदेवे समयसारमां कर्युं छे.
स्वद्रव्यनी चिन्तामां पोतानुं चित्त जोड्युं छे–एवा जिज्ञासु शिष्यनी
वात छे. तेने बहारनी बधी चिन्ता छूटीने अंतरमां एक ज चिन्ता
छे के मने मारा आत्मानो प्रत्यक्ष अनुभव कई रीते थाय?