पालन करता हता.
वस्तुनुं दान करवुं–ईत्यादि विवेकबुद्धि देखीने ते देवे मेघरथनी स्तुति करी.
एकवार नंदीश्वर–अष्टाह्निकाना पर्वमां जिनबिंबोनी महापूजा करीने तेमणे
प्रौषधउपवास कर्यो. अने रात्रे एकान्त उद्यानमां ते धीर–वीर धर्मात्मा एकाग्रचित्तथी
ध्यानमां ऊभा; सिद्धोनां गुणोना स्मरणपूर्वक प्रतिमायोग धारण करीने मेरुसमान
अचलपणे आत्मध्यानमां स्थिर थया. अहो, शुद्ध चैतन्यना ध्यानमां तत्पर एवा ते
धर्मात्मामेघरथ, मुनिराज समान शोभता हता. एवामां ईन्द्रसभामां एक विशेष घटना
बनी. शुं बन्युं?
बिराजमान ईन्द्रे, ध्यानमां बिराजमान धीर–वीर मेघरथ महाराजाने देखीने आश्चर्यथी
तेमनी प्रशंसा करी. ईन्द्रे कह्युं के अहो, आप धन्य छो! आप सम्यक्त्वादि गुणोना
सागर छो, आप ज्ञानी छो, विद्वान छो, धैर्यवान छो; आत्मचिन्तनमां तत्पर एवा
आपने देखीने आश्चर्य थाय छे. आप द्रढ शीलवान छो...मेरुसमान आचल छो.–एम
अनेकप्रकारे ईन्द्रे स्तुति तथा प्रशंसा करी.
ईन्द्रसभामां जेनी स्तुति थाय?
छे, तेओ महागंभीर छे, राजाओना शिरोमणि छे, त्रण ज्ञानना धारण छे, तेओ एक
भव पछी भरतक्षेत्रमां शांतिनाथ तीर्थंकर थनार छे. अने अत्यारे प्रतिमायोग धारण
करीने आत्मध्यानमां लागेला छे, तेमणे शरीरनुं पण ममत्व छोडी दीधुं छे, ने