Atmadharma magazine - Ank 289
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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रजतजयंतिनुं वर्ष
२८९
सुखधाम

सुखधाम अनंत सुसंत चही,
दिनरात रहे तद्ध्यान महीं;
प्रशांत अनंत सुधामय जे,
प्रणमुं पद ते वरते जय ते.
(अनंत सुखधाम एवा चैतन्यपदनी आराधना
वडे आ वर्ष सर्व जीवोने आनंदकारी हो.)
तंत्री: जगजीवन बावचंद दोशी * संपादक: ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २४९४ कारतक (लवाजमःचार रूपिया) वर्ष २प: अंक १