Atmadharma magazine - Ank 289
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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कारतक : २४९४ आत्मधर्म : १ :
वर्ष २प अंक १
वीर संवत २४९४ कारतक
(वार्षिक लवाजम चार रूपिया)
रजतजयंतिनुं वर्ष
महावीर प्रभुना मार्गे
महावीरप्रभुना निर्वाणोत्सवने चार–पांच दिवसनी वार हती त्यारे जिनमंदिरमां
भावभीनी भक्ति गवाती हती के ‘महावीरा! तेरी धूनमें आनंद आ रहा है... संतोने
महावीरप्रभुनी धूनमां आनंद आवे छे–केमके महावीरनो मार्ग तेमणे जोयो छे, ने ए
वीरमार्गे तेओ जई रह्या छे...ए मार्ग आनंदकारी छे.
ते वखते एम थयुं के हे वीरनाथ! आप तो आ भरतक्षेत्रने सूनुं सूनुं मूकीने
सिद्धालयमां पधारी गया...अमे तो आपने जोया य नथी...त्यारे वीरनाथनी प्रतिमामांथी
जाणे ध्वनि ऊठतो होय के हे भव्य! मारो मार्ग भरतक्षेत्रमां अत्यारे पण जीवंत छे, ने ए
मार्ग देखाडनारा साधको पण विद्यमान छे, अहा, आज अढी हजार वर्षे पण वीरनाथनो
जीवंतमार्ग अने ते मार्गे दोरी जनारा सन्तो, –एमने देखीने आनंद थाय छे.
हे वीरप्रभो! आपना मोक्षगमन पछी पण आप जे मार्ग देखाडी गया ते मार्गे
थोडाज वखतमां गौतमस्वामी आपनी पासे मोक्षमां आव्या, पछी तो सुधर्मस्वामी ने
जंबुस्वामी पण ए ज मार्गे आव्या, श्रीधरस्वामी वगेरे पण ए ज मार्गे सिद्धालयमां
आव्या.... भद्रबाहुस्वामी ने धरसेनस्वामी, कुंदकुंदस्वामी ने वीरसेनस्वामी,
समन्तभद्रस्वामी ने अमृतचंद्रस्वामी वगेरे घणाय मुनिवरो पण आपना ज मार्गे
झडपभेर आवी रह्या छे...अमारा गुरु वगेरे अनेक संतो पण आत्मश्रद्धाना बळे
आपना मार्गे आवी रह्या छे...ने तेमनी साथे साथे अमने पण आपना ज मार्गे दोरी
रह्या छे...अमारा माटे आ महान आनंदनी वात छे. अने अमे रोज भावना भावीए
छीए के–
‘प्रभुजी! तारा पगले पगले मारे आववुं रे.......’: