वीरमार्गे तेओ जई रह्या छे...ए मार्ग आनंदकारी छे.
जाणे ध्वनि ऊठतो होय के हे भव्य! मारो मार्ग भरतक्षेत्रमां अत्यारे पण जीवंत छे, ने ए
मार्ग देखाडनारा साधको पण विद्यमान छे, अहा, आज अढी हजार वर्षे पण वीरनाथनो
जीवंतमार्ग अने ते मार्गे दोरी जनारा सन्तो, –एमने देखीने आनंद थाय छे.
जंबुस्वामी पण ए ज मार्गे आव्या, श्रीधरस्वामी वगेरे पण ए ज मार्गे सिद्धालयमां
आव्या.... भद्रबाहुस्वामी ने धरसेनस्वामी, कुंदकुंदस्वामी ने वीरसेनस्वामी,
समन्तभद्रस्वामी ने अमृतचंद्रस्वामी वगेरे घणाय मुनिवरो पण आपना ज मार्गे
झडपभेर आवी रह्या छे...अमारा गुरु वगेरे अनेक संतो पण आत्मश्रद्धाना बळे
आपना मार्गे आवी रह्या छे...ने तेमनी साथे साथे अमने पण आपना ज मार्गे दोरी
रह्या छे...अमारा माटे आ महान आनंदनी वात छे. अने अमे रोज भावना भावीए
छीए के–