Atmadharma magazine - Ank 291
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९४ आत्मधर्म :४१:
पुरुषार्थनी सफळता
केटलाक जीवो कहे छे के अमे सम्यग्दर्शन माटे पुरुषार्थ तो करीए छीए
(आवा सेंकडो आत्मार्थप्रेरक उत्तम न्यायो द्वारा आत्मवैभवनी प्राप्तिनो
सत्यपुरुषार्थ समजवा माटे ताजेतरमां प्रगट थनार (‘आत्मवैभव’ पुस्तक
अवश्य वांचो. पृ. ४८० उत्तमपुस्तक: मूल्य साडा त्रण रूपिया)
‘आत्मधर्म’ ना वांचनमां मशगुल
शेठश्री प्रेमचंदभाई.
जेमणे क्षणमात्रमां देह छोडी दीधो