Atmadharma magazine - Ank 294
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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रजत जयंतिनुं वर्ष
२९४
महावीरे बतावेला मार्गे जवुं ए ज एमनो
जन्मोत्सव उजववानी उत्तम रीते छे. जीवनमां गमे तेवी
परिस्थिति आवे त्यारे हे जीव! आपणा महावीरप्रभु जेवा
वीतरागी देव–गुरु–संतोने खूब भावथी याद करीने एम
विचारजे के महावीरे शुं कर्युं? –हुं पण ए ज करुं के मारा देव–
गुरुए जे कर्युं. वीतरागभाव वडे पोताना आत्माने लाभ
थाय ए ज करवानुं छे; ए ज महावीरनो बोध छे.
जेनाथी आत्मलाभ थतो होय तेमां पाछीपानी करुं
नहि; वीर थईने वीरना मार्गे जाउं. जेनाथी लाभ न थाय ते
मार्गे जाउं नहि. मारा हित माटे एवो बहादुर वीर बनुं के
जगतनी कोई परिस्थिति मने डगावी न शके, ने हुं मारा देव–
गुरु जेवो बनी जउं. वीर थईने महावीरना मार्गे जाउं.
तंत्री : जगजीवन बावचंद दोशी * संपादक : ब्र. हरिलाल जैन
वी सं.२४९४ चैत्र (लवाजम : चार रूपिया) वर्ष २प : अंक ६