Atmadharma magazine - Ank 295
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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रजतजयंतिनुं वर्ष
र९प
वीतरागी सन्तो द्वारा विश्व शोभे छे
विश्व शोभे छे ते मात्र
वीतरागभावरूप धर्मतीर्थवडे ज शोभे छे; एवा
तीर्थने साधनारा ने प्रवर्तावनारा एवा सन्तो
जगतमां शोभे छे. एवा सन्त ज्यां ज्यां जाय त्यां
आनंदमंगळ वर्ते छे; ग्रीष्मना तीव्र तापथी संतप्त
जनोने मेघवर्षा वडे जेम शांति थाय छे तेम
भवतापथी तप्त भव्यजीवोने वीतरागी सन्तोनी
वाणीरूप मेघवर्षा परम शांति आपे छे. एवा
सन्त द्वारा आजे भारतमां सुवर्णधाम शोभी रह्युं
छे. सुवर्णना सन्त भव्यजीवोने वीतरागमार्ग
दर्शावीने अनंत शांतिमय सुखधाममां लई जाय
छे. अहो, एवा उपकारी सन्तोने नमस्कार हो.
धन धन जगमां एवा सन्तो...संगत जेनी बहु सारी.
तंत्री : जगजीवन बावचंद दोशी • संपादक : ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. र४९४ वैशाख (लवाजम : चार रूपिया) वर्ष रप : अंक