: वैशाख : र४९४ “आत्मधर्म” : १ :
आपणा पूज्य गुरुदेव
आपणे अने भारतना मुमुक्षुओए हमणां परम उल्लास–
भक्तिपूर्वक गुरुदेवनी जन्मजयंतिनो उत्सव उजव्यो...गुरुदेवना
जीवनमां मुमुक्षु भक्तो आटला आनंदथी रस ल्ये छे–केमके एमनुं
पवित्र जीवन आपणने आत्मसाधनानी प्रेरणा आपे छे,
आत्महितनो मार्ग तेओश्री आपणने देखाडी रह्या छे. धर्मनी
साधना ए ज जीवननी महत्ता छे एम तेमनुं जीवन प्रसिद्ध करी
रह्युं छे. एमनुं जीवन ए पुराणपुरुषोनुं पूर्वजीवन छे. जीवनमां
आत्मार्थ साधवा माटे जीवनी केटली तैयारी होवी जोईए– एनो
आदर्श गुरुदेवना जीवनमां जोवा मळे छे. आवा महापुरुषना
अंतरंग जीवननी ओळखाण करवा माटे अंतरनी कोई जुदी द्रष्टि
जोईए...विरला जीवो एवी ओळखाण करे छे. श्रीमद् राजचंद्रना
शब्दोमां कहीए तो ‘मुमुक्षुनां नेत्रो महात्माने ओळखी ले छे.’
आपणा गुरुदेवनुं जीवन भूतकाळमांय महान
विशेषताओथी भरपूर हतुं, वर्तमानमां तेमना जीवननी परम
विशेषताओ आपणे नजरे नीहाळी रह्या छीए, ने भविष्यनुं एमनुं
जीवन जगतना जे सर्वोत्कृष्ट पदने शोभावशे–एनी स्मृति पण
आत्माने धर्मोल्लास जगाडे छे ने ए मंगलमूर्ति महात्मा प्रत्ये दिव्य
बहुमान जागे छे, तथा एम धन्यता अनुभवाय छे के आवा महान
आत्मानी साथे ज, तेमना चरणसमीपमां आपणे वसी रह्या छीए.
जे गुरुदेवे जीवनमां आत्मशोध करीने आपणने पण एनो
निःशंकमार्ग देखाड्यो...एवा गुरुदेवने देहातीत, जन्म–मरणथी
रहित अविनाशी चिन्मात्रस्वरूपे आत्मभावे आपणे ओळखीए,
अने एवा आत्मभावनी उपासना करीने निश्चय गुरुसेवानुं
उत्तमफळ प्राप्त करीए...ने ठेठ मोक्षनगरी सुधी गुरुदेवनी साथे ज
रहीए– एवी अंतरनी भावना साथे गुरुदेवने अभिनंदीए छीए.
–ब्र. हरिलाल जैन.