Atmadharma magazine - Ank 303
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : पोष : २४९प
* अमदावाद : बालविभागनी शाखा उत्साहपूर्वक नवा नवा कार्यक्रमो योजे छे.
ने सौ होंशथी भाग ल्ये छे. भगवान महावीर संबंधी लेखनस्पर्धा अने वकतृत्वस्पर्धा
योजायेल, तेमां घणाए भाग लीधो ने ईनामो वहेंचाया हता. हवे ‘श्रीमद् राजचंद्र’
संबंधी लेखन–वकतृत्वस्पर्धा योजाशे.
हिमालयनी गोदमां...जैनसंस्कृति
दैनिक “नवभारत टाइम्स [नई दिल्ली] ना उपसंपादक श्री रमेशचंद्र
जैने एक लेखमां आपेली माहिती उपयोगी होवाथी अहीं संक्षेपमां तेनो उल्लेख
करीए छीए. तेओ लखे छे : बदरीनाथनी मुख्य मूर्ति तीर्थंकर पार्श्वनाथनी छे के
बीजा कोईनी–तेमां मतभेद संभव छे, परंतु एकवार हिमालयनी गोदमां
जैनधर्मनो डंको वागतो हतो–तेनां अनेक प्रमाण छे. देहरादूनथी नजीबाबाद
(बिजनोर जिल्ला) सुधी फेलायेली शिवालिक पर्वतमाळामां, तेमज तीबेट–
भारतनी सरहदना गढदेशना समस्त क्षेत्रमां जैनधर्म–संबंधी पुरातत्त्वो
पथरायेला छे. एम जणाय छे के पहेलां आ क्षेत्रोमां जैनमंदिरो हता–जे काळ
प्रभावे क्षीण थई गया; अने बदरीनाथ नजीकना नारद–कुंडमां अनेक जैनमूर्तिओ
हती. शंकराचार्य ज्यारे बद्रीकाश्रम पहोंच्या अने त्यांना मंदिर माटे भगवाननी
मूर्तिनी जरूर पडी त्यारे नारदकुंडमांथी प्राप्त भगवान पार्श्वनाथनी मूर्तिने ज
आदिनारायण रूपे स्थापित करी.
उत्तरप्रदेशना गढवाल केन्द्रमां एक अत्यंत प्राचीन नगरी हती; काश्मीरना
हालना श्रीनगर करतां ते जोके ओछी प्रसिद्धिमां छे, परंतु एनी प्राचिनता घणी छे.
सातमी शताब्दिमां (लगभग १३०० वर्ष पहेलां) ज्यारे ह्यु–एन–संग चीनीयात्री
भारत आवेल त्यारे ते नगरीनो ब्रह्मपुरी नामथी तेणे उल्लेख कर्यो छे. गंगानी
मुख्य शाखा अलकनंदाना किनारे वसेली ए अत्यंत प्राचीन श्रीनगरी लगभग ८०
वर्ष पहेलां एक मोटा पूरमां तणाई गई; ते पुराणा श्रीनगरमां पण जैनमंदिर
हता. पछी ते प्राचीन नगरना स्थळनी नजीकमां एक ऊंची पहाडी पर आधुनिक
ढंगथी नवुं श्रीनगर वस्युं. तेनी मुख्य बजारमां एक जैनमहोल्लो पण वस्यो, जेनी
पाछळ दिगंबर जैनमंदिर बन्युं. प्राचीन मंदिरनी मूर्तिओ आ नवा मंदिरमां ई. स.
१९२प लगभगमां (आजथी ४४ वर्ष पहेलां) स्थापित करवामां आवी. आ नवा
मंदिरनुं निर्माण बे श्रावकोए कराव्युं,–मनोहरलाल जैन तथा प्रतापसिंह जैन.