Atmadharma magazine - Ank 305
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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फोन नं : ३४ ‘‘आत्मधर्म’’ Regd. No. G. 182
पं. श्री दौलतरामजी रचित सुप्रसिद्ध छहढाळा उपर पू. गुरुदेवे जे
अध्यात्मप्रवचनो कर्या ते ‘वीतरागविज्ञान’ पुस्तकरूपे छपाय छे; छ ढाळना छ
पुस्तको थवाना छे, तेमांथी पहेलुं पुस्तक छपाईने प्रसिद्ध थई चुक्युं छे. आ
प्रवचनो अत्यंत सुगम होवा छतां खूब भावभीनां छे, नाना बाळक के मोटा वृद्ध
सौ कोईने उपयोगी थाय तेवुं सुंदर संकलन छे, तेमज साथे प्रसंगोचित चित्रोथी
पुस्तक शोभायमान छे. छेल्ले पुस्तकना दोहनरूपे बसो टूंका प्रश्न–उत्तर आपेल छे
ते पण अभ्यास करवामां खास उपयोगी छे. आ पुस्तक लगभग अडधी किंमते
(पचास पैसे) आपवानुं नक्की थयुं छे. तेमज ता. १प–२–६९ सुधी थयेला
आत्मधर्मना ग्राहकोने ते स्व. भाईश्री वृजलाल नागरदास मोदीनी स्मृतिमां
तेमना भाईओ तरफथी भेट आपवामां आवशे. आ पुस्तकमां पृ. ३९ मां ‘एक
मिनिटमां हजारो वार जन्म–मरण करीने’ एम भूलथी लखाई गयुं छे, त्यां
‘हजारो’ ने बदले ‘सेंकडो’ एम सुधारीने वांचवुं.
पुस्तक भेट मेळववा माटेनुं “कुपन” आ अंकनी साथे ज छे, ते कुपन
बतावीने आप आपनुं भेटपुस्तक नीचेना स्थळोएथी मेळवी लेशोजी. बधाय
ग्राहकोने आ अंकनी साथे भेटकुपन मोकलेल छे, छतां कोईकने न मळ्‌युं होय तो
तेमणे ता. १० मार्च सुधीमां खबर आपवा, त्यार पछीनी फरियादो उपर लक्ष
आपवानुं मुश्केल छे.
श्री दिगंबर जैनस्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती प्रकाशक अने
मुद्रक: मगनलाल जैन, अजित मुद्रणालय: सोनगढ (प्रत: २प००)