: १४ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९प
ऋषभदेव–स्तुति
आ ऋषभदेव तीर्थंकरनी स्तुति छे.
अनंता तीर्थंकरो थया तेमना जेवो सर्वज्ञस्वभावी आत्मा छे; तेनी ओळखाणपूर्वक
सर्वज्ञपदने साधवा जे तैयार थयो ते जीवने, सर्वज्ञपद पामेला तीर्थंकरो प्रत्ये बहुमाननो भाव
आवे छे.
ज्यां सुधी सर्वज्ञ जेवी स्ववस्तुनी किंमत न आवे ने रागनी किंमत भासे त्यांसुधी
सर्वज्ञनी स्तुति साची न थाय. सर्वज्ञ जेवा पोताना आत्माने जाणीने रागथी जुदो पड्यो ते
जीवे सर्वज्ञनी परमार्थस्तुति करी, ते अरहिंतनो साचो अनुयायी थयो.
अहो, शुद्धचिदानंदतत्त्वनी वार्ता सांभळवा माटे स्वर्गना ईन्द्रो पण त्यांथी आ मनुष्यलोकमां
भगवानना समवसरणमां आवे छे. देवोना ईन्द्रना वैभव करतांय आ चैतन्यतत्त्व महिमावंत छे; तेनी
कथा सांभळता ईन्द्रोने ईन्द्रपदनो वैभव पण तूच्छ लागे छे. जेनी कथा पण दुर्लभ–ते चैतन्यना
अनुभवनी तो शी वात! एने तो कोई विरला ज जाणे छे; ने ते सांभळनारा पण विरला ज होय छे.
अहा, चैतन्यतत्त्वनी कथा वीतरागरसथी भरेली छे, तेमां रागनो पोषाक रस नथी.
सामान्य प्राणीओने ते नीरस लागे छे केमके तेमने तो रागनो प्रेम छे, चैतन्यरसनी एने खबर
नथी. जेने चैतन्यना शांतरसनी खबर नथी ते रागादि विकाररूपी अग्निमां सेकाई रह्या छे छतां
अज्ञानथी तेमां सुख माने छे. बापु! राग तो आकुळतानी भठ्ठी छे.
भगवाननी स्तुति करनार अंर्तचक्षुवडे पोतामां ज भगवानने नीहाळीने पोते पण भगवान
जेवो थई जाय छे. ने बहारमां भगवानने भक्तिपूर्वक नीहाळतां जे पुण्यफळ आवे छे ते पण अपार छे.
हे सर्वज्ञ प्रभो! आपनी स्तुति करनार ज्ञाननुं ज बहुमान करे छे ने रागनो आदर
करतो नथी. वीतरागने भजे ते रागने केम आदरे? आपनी सर्वज्ञताने ओळखतां राग अने
ज्ञाननुं पृथक्करण थाय छे.
आ सर्वज्ञभगवाननी स्तुतिमां पण भेगो धर्म छे. –कई रीते? ते कहेवाय छे. भगवान जेवो
पोतानो आत्मा अतीन्द्रिय आनंदथी भरेलो जे प्रत्यक्ष स्वसंवेदनरूप छे तेनुं भान करतां जे
वीतरागभाव प्रगट्यो ते धर्म छे, ने ते भगवाननी परमार्थभक्ति छे. सर्वज्ञनी परमार्थस्तुतिनो संबंध
पोताना सर्वज्ञस्वभावनी साथे छे, राग साथे के पर साथे एनो संबंध नथी.
भगवाननो आत्मा पण पहेलेथी भगवान न हतो, पहेलां तो ते पण अज्ञानीपणे
संसारमां हतो; पछी आत्मानुं भान कर्युं के अहो! हुं तो चैतन्यवस्तु छुं, रागथी ने देहथी अत्यंत
भिन्न मारुं स्वरूप छे. –आवुं अपूर्व भान करीने ते आत्मा साधक थयो; पछी अनुक्रमे आगळ
वधतां भगवाने छेल्ला अवतारमां आत्मसाधना पूर्ण करी. आवा भगवानने ओळखीने भक्ति
करनारने भेदज्ञान थया विना रहे नहीं.