Atmadharma magazine - Ank 308a
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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फोन नं. : ३४ “आत्मधर्म” Regd. No. G. 182
मोक्षना साथीदार
ज्ञानी संतो आपणा मोक्षना साथीदार छे; पोते करेला स्वानुभवनी रीत
बतावीने तेओ कहे छे के तुं पण आवो स्वानुभव करीने अमारी साथे मोक्षमां चाल.
वाह! सन्तो वहालथी शिष्यजनोने मोक्षमां पोतानी साथे लई जाय छे:–
हे सखा! चालने.....मारी साथ मोक्षमां,
छोड परभावने......झूल आनंदमां.....
निज साथ मोक्षमां लई जवा भव्यने,
श्री मुनिराज संबोधता व्हालथी.....हे सखा!
सांभळी बुद्धिने वाळीने अंतरे,
मग्न था प्रेमथी सुखना सागरे;
निज स्व–रूपने एकने ग्रह तुं.
ए ज आगम तणा मर्मनो सार छे....हे सखा!
सूज्ञ पुरुष तो सूणी आ शिखने,
हर्षथी उल्लसी छोडे पर भावने;
परमानंद–भरपूर निज पद ग्रही,
शुद्ध स्वरूपमां वेगथी ते वळे....हे सखा!
अमे जशुं मोक्षमां, केम तने छोडशुं?
आवजे मोक्षमां तुंय अम साथमां.....
भव्य निज पदने साधजे भावथी,
शिख आ संतनी शीघ्र तुं मानजे....हे सखा!
तीर्थपति मोक्षमां जाय छे जे भवे,
गणपति पण जरूर जाय छे ते भवे;
शिष्य ए संतनो रत्न५य साधीने....
संतनी साथमां मोक्षमां जाय छे......हे सखा!
नियमसार कळश १३३ उपरथी बनावेलुं आ काव्य अगाउ सम्यग्दर्शन पुस्तक १
(बीजी आवृत्ति) पृ. १९प मां, तेमज आत्मधर्मना हीरकजयंति अंक (नं. २४७) मां
छपायेलुं छे. अनेक जिज्ञासुओए ते मोढे पण कर्युं छे. ईनामी योजनानुसार जेटला भाई–
बहेनोए आ काव्य शोधी मोकल्युं हतुं, ते दरेकने ईनाम मोकलाई गयुं छे.
(सं.)
––––श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती प्रकाशक अने
मुद्रक: मगनलाल जैन. अजित मुद्रणालय: सोनगढ (प्रत: २६००)