Atmadharma magazine - Ank 313
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 48 of 49

background image
गतांकमां आ चित्रना चार
जीवोने ओळखवानुं कहेल
हतुं, ते आ प्रमाणे छे–
(१) ते जीव अज्ञानी
मिथ्याद्रष्टि छे; ते कर्म बांधे छे झाझुं,
पण छोडे छे थोडुं.
(२) आ बीजो जीव ज्ञानी
धर्मात्मा छे; ते घणुं कर्म छोडे छे, पण
बांधे थोडुंक ज.
(३) आकाशमां रहेला ते
अरिहंत भगवान, बधा ज कर्मोने
छोडे छे, ने जराय कर्म बांधता नथी.
(४) दूर दूर रहेला ते
सिद्धभगवान कर्मोने बांधता पण
नथी, ने छोडता पण नथी.

विशेष परिचय:– नदी किनारे ज्ञानी धर्मात्मा आत्मविचारमां बेठा छे, पासे
बाळक बेठेलो छे ते बाळकनी जेम सरळ अने जिज्ञासु छे.
(१) हवे पहेलो जीव त्यांथी ‘पसार थई जाय छे,’–ते ज्ञानी धर्मात्मा पासे
आवतो नथी पण तेनाथी विमुख वर्ते छे. ते मिथ्याद्रष्टि छे.
(२) बीजो जीव त्यां आवीने ‘ज्ञानी धर्मात्मानी साथे ज बेठो’ ते ज्ञानी छे,
ज्ञानी साथे तेने साधर्मीपणुं छे.
(३) त्रीजा अरिहंत भगवान छे, ते आकाशमां गमन करे छे; तेमनी ओळखाण
आपती वखते ज्ञानीए तेमना प्रत्ये हाथ जोड्या, केमके ते पूज्य देव छे.
(४) चोथा सिद्ध भगवान छे, तेओ अहीं नथी आवता, पण मुमुक्षु जीव
ज्ञानवडे तेमने लक्षमां ल्ये छे. ने धर्मात्माए आंख मींचीने तेमनी ओळखाण आपी
एटले के अंतरनी द्रष्टि वडे ते सिद्ध भगवान ओळखाय छे एम बताव्युं. तेमने कोई
कर्मनो संबंध ज नथी, तेथी तेओ कर्मने बांधता के छोडता नथी.