Atmadharma magazine - Ank 315
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९६ : १९ :
–स्वर्गस्थ बधा जीवो वीतरागी देव–गुरु–धर्मना शरणे आत्महित पामो एम
भावना भावीए छीए; अने तेमना कुटुंबीजनो आ प्रसंगने मात्र दुःखनुं निमित्त न
बनावतां वैराग्यपूर्वक संसारनुं स्वरूप विचारीने, पोताना आत्माने आत्महितना पंथे
वाळे–एम ईच्छीए छीए. बंधुओ, गुरुदेवे आत्मानुं एवुं उत्तम स्वरूप आपणने
बताव्युं छे के जेना लक्षे गमे तेवी परिस्थितिमां पण समाधान अने शांति राखी शकाय
छे. ए लक्षने आपणे क््यारेय न चुकीए अने वीरतापूर्वक वैराग्यमार्गमां आगेकूच
करीए.
गुरुदेव जड–चेतननी भिन्नता अने आत्मानुं अविनाशीपणुं समजावीने जे