: फागण: २४९६ आत्मधर्म : ५३ :
दशहजार–मराठी
जैनबाळपोथी भेट
पू. श्री कानजीस्वामी अंतरीक्ष–पार्श्वनाथ (शिरपुर) मां
पंचकल्याणक प्रतिष्ठा–महोत्सव निमित्ते पधार्या त्यारे तेओश्रीना
सुहस्ते मराठी भाषामां जैनबाळपोथीनी दशहजार प्रति
आबालवृद्ध सौने भेटरूप वहेंचवामां आवी हती. ब्र. हरिलाल
जैन द्वारा लखायेली आ ‘जैनबाळपोथी’ ते जैनसमाजनुं एक
सर्वोपयोगी पुस्तक छे, अने हवे पछीनी आवृत्ति वखते तेनी
प्रतसंख्या एक लाखनी मर्यादा वटावी जशे. बाळपोथी पछीना
पुस्तकोनी श्रेणी पण तैयार थाय छे; अने तेमांथी एक पुस्तकनी
वीश हजार प्रत छपाई रही छे,–जे वैशाख सुद बीजे प्रगट थशे
मराठी बाळपोथीनुं प्रकाशन मुंबई मुमुक्षुमंडळ तरफथी
‘रत्नचिंतामणि जयंतिमहोत्सव’ ग्रंथमाळाना बीजा पुष्परूपे थयुं
छे.–धन्यवाद!
आत्मरस–हरिरस
माह सुद पुनमे पू. गुरुदेव जोरावरनगरे पधार्या; स्वागत
बाद मंगल– प्रवचनमां आत्मानो साचो रस बतावतां कह्युं के–
आत्मामां ज्ञान अने आनंदनो रस भर्यो छे, तेनुं भान करीने
अनुभव थाय ते साचुं मंगळ छे. हरिरस एटले आत्मरस, एटले
के अतीन्द्रिय आनंदनो रस, तेनो स्वाद आवे ते मंगळ छे. आत्मा
पोते अज्ञान अने राग–द्वेषने हरनारो हरि छे. जगतना
विषयोनो रस के रागनो रस ते तो कडवा झेर जेवो छे. आत्माना
ज्ञानस्वभावमां जे आनंदरस छे तेनो स्वाद लेतां अरिहंतदशा
प्रगटे छे, ते मंगळ छे. आत्मा अतीन्द्रिय आनंदरूप हरिरसथी
भरेलो छे; तेनो रस प्रगट करवो ने जगतनो रस छोडवो, ते
मंगळ छे, ते धर्म छे, ते मोक्षनो मार्ग छे.