: र : आत्मधर्म : वैशाख : र४९६
छे. समयसारमां अलौकिकभावो भर्या छे. कुंदकुद आचार्यदेवे पण वंदित्तु सव्वसिद्धे
कहीने अपूर्व भावे समयसार शरू कर्युं ने निर्विघ्नपणे ४१प गाथा द्वारा तेनी रचना
पूरी थई गई, ते महान अप्रतिहत मंगळ छे.
मंगळिकमां आचार्यदेवे शुद्ध आत्माने नमस्कार कर्या; समयसार एटले
शुद्धआत्मा ते भावरूप छे, सत्तारूप छे; ए रीते भावरूप वस्तु, चित्स्वभाव तेनो गुण,
अने स्वानुभूतिरूप पर्याय,–आवा शुद्ध द्रव्य–गुण–पर्यायस्वरूप समयसारने नमस्कार
हो.
समयसारमां हुं नमुं छुं–तेमां ढळुं छुं, तेमां अंतर्मुख थाउं छुं आवो भाव ते
अपूर्व अप्रतिहत मंगळ छे. अप्रतिहतभावे अंर्तस्वरूपमां वळ्या. हवे अमारी
परिणति बीजा कोई भावमां नमवानी नथी.
अनंत ज्ञान–आनंद स्वभावथी परिपूर्ण आत्मा पोताना स्वानुभवरूप निर्दोष
वीतरागी पर्याय वडे प्रसिद्ध थाय छे, ने ते निर्मळ परिणतिमां रागादि अशुद्धतानो
अभाव छे. आम अंतरना आनंद सहित स्वरूपने प्रसिद्ध करीने अपूर्व मंगळ कर्युं छे.
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सोनगढमां –
वैशाख सुद चोथे पू. गुरुदेव सोनगढ पधार्या ने सोनगढनुं वातावरण
अध्यात्मना गूंजारवथी पुन: प्रफुल्लित बन्युं. सोनगढनी जनतामां नवुं चेतन
आव्युं... बजारो जागृत थई गई...सवारे समयसार गा. र७र थी अने बपोरे
पंचास्तिकाय गा. ६र थी प्रवचनो शरू थया. सवार–सांज शिक्षणवर्ग पण चाली
वगेरेथी आखोय दिवस भरचक कार्यक्रम चाले छे ने देशभरना जिज्ञासुओ
आनंदथी लाभ ल्ये छे. वैशाख सुद पांचमे नवी जैन बाळपोथी (भाग बीजो) नुं
प्रकाशन माननीय प्रमुखश्रीना हस्ते गुरुदेवने अर्पण करीने थयुं हतुं. छेल्ला त्रण
मासथी प्रवासमां पहेलेथी छेल्ले सुधी गुरुदेव साथे ज रहेल, ते दरमियान बीजी
प्रवृत्तिओ मुलतवी राखेल; तेथी प्रवास दरमियान अनेक जिज्ञासुओना जे सेंकडो
पत्रो मळ्या छे तेमने कोई उत्तर आपी शकाया नथी; हवे थोडा दिवसमां ते बधा
पत्रोनी योग्य व्यवस्था थई जशे.
– संपादक.