फोनं नं. : ३४ “आत्म धर्म” Regd No. G 187
आत्म धर्म
(२७मुं वर्ष पूरुं थाय छे)
बंधुओ, दुनियामां सर्वोत्कृष्ट निधान वीतरागी देव–गुरु–धर्म छे; आपणा परम
भाग्यथी ए उत्कृष्ट निधान आजे आपणने मळ्या छे. तो ए निधानने योग्य आपणुं
हृदय विशाळ अने स्वच्छ बनावीए ने तेमां ए निधानने पधरावीने तेनो लाभ
लईए–ए आपणुं कर्तव्य छे,– समयमात्रनी आळस वगर ए काम करवानुं छे. ए कार्य
करीशुं त्यारे ज अमूल्य निधाननी साची किंमत समजाशे. गुरुदेवनो महान उपकार छे के
आपणामां रहेला निधान आपणने बतावे छे. तेओ एम नथी कहता के ‘हुं तने
निधान आपुं,’ पण एम कहे छे के ‘तारा निधान तारामां ज छे, बीजा पासे तुं माग
मा.’ आवी रीते आत्मसन्मुखद्रष्टि करावनारा संतो आपणने मळ्या छे; तेमने
अनुसरीने आपणे वीतराग–जिनमार्गमां प्रस्थान करवानुं छे.
आजे पू. गुरुदेव जे वीतराग–जिनमार्गनो उपदेश आपी रह्या छे तेमांथी
मधुरसन्देश लईने आवतुं होवाथी आत्मधर्म सर्वे जिज्ञासुओने खूब वहालुं छे, उच्च
भावनापूर्वक हजारो वांचको ते बहुमानथी वांचे छे, मोटा विद्वानो के नाना बाळको पण
उमंगथी ते वांचे छे. ए रीते गुरुदेवना प्रतापे आत्मधर्म द्वारा जिनधर्मनी महान
प्रभावना थई रही छे. आ अंकनी साथे आत्मधर्मनुं २७ मुं वर्ष पूरुं थाय छे; आवता
अंकथी २८मुं वर्ष शरू थशे. शरूआतनो मंगल अंक अने तेना द्वारा दीपावलीनो तथा
बेसतावर्षनो सन्देश वेलासर (दीवाळी पछी तरतमां) मेळववा माटे, आपनुं लवाजम
दीवाळी अगाउ भरी देवानी व्यवस्था करशो.
पू. श्री कहानगुरुनी मंगल आशीष झीलीने, तेमनी मंगल छायामां चालतुं
आपणुं आत्मधर्म चार मुख्य उदे्श धरावे छे, सौथी पहेलुं आत्मार्थीतानुं पोषण; (र)
देव–गुरु–धर्मनी सेवा (३) साधर्मीओमां वात्सल्यनो विस्तार अने (४) बाळकोमां
धार्मिक संस्कारोनुं सींचन. संसारना झंझटोने ते कदी स्पर्शतुं नथी; ते तो सदा पोताना
उत्तम ध्येय तरफ ज चाल्युं जाय छे.
अध्यात्मरसिक उच्चकक्षानो विशाळ वाचकवर्ग ए आत्मधर्मनुं गौरव छे. अने
सौ साधर्मीओ पण आत्मधर्मने पोतानुं ज समजीने प्रेमभर्यो सहकार अने सूचनाओ
आपी रह्या छे, ते बदल सौना आभारी छीए. जयजिनेन्द्र. – ब्र. ह. जैन.
प्रकाशक: (सौराष्ट्र)
मुद्रक: मगनलाल जैन अजित मुद्रणालय: सोनगढ (सौराष्ट्र) प्रत: २८००