आगेवानीमां नगरजनोए रस्तामां मखमलना पटा पाथरीने उमंगभर्युं स्वागत कर्युं
ने प्रवचनादिनो लाभ लीधो. सहेला प्रवचनमां आत्मज्ञाननो महिमा समजावतां
गुरुदेवे कह्युं के–
आत्मा ज्ञान–आनंदनो समुद्र छे, तेने तमे अनुभवमां ल्यो.
पण जाणे छे. आवा आत्मानो अनुभव थवामां कोई बीजानी अपेक्षा नथी, धर्म
थवानी रीत ए छे के देहथी भिन्न आत्माने ओळखवो, आवा आत्मानी ओळखाण
कर्या वगर पापभाव करवाथी जीव नरकमां जाय छे, ने पुण्यभावथी स्वर्गमां जाय छे;
पण स्वर्गमांय कांई सुख नथी. मनुष्यभवमां आवुं आत्मानुं श्रवण मळवुं मोघुं छे;
सत्समागमे आत्मानुं भान करवुं जोईए के हुं तो ज्ञानस्वरूप आत्मा छुं. वारंवार
अंदर एनुं रटण चाले त्यारे ज्ञानमां आत्मा प्रत्यक्ष थाय छे. पण ते माटे सत्संगे
जीवने पोताना स्वभावनी प्रतीत आववी जोईए.