Atmadharma magazine - Ank 336
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९७ आत्मधर्म : ३९ :
विविध वचनामृत
जेनामां सुख छे–तेने जाणतां सुख थाय छे.
जेनामां सुख नथी तेने जाणतां सुख थतुं नथी.
सुखनो रस्तो
मोक्ष एटले शुं? मोक्ष एटले पुरुं सुख.
राग सुख छे के दुःख? राग ते दुःख छे.
रागवडे मोक्ष थाय? ना; रागवडे तो दुःख थाय.
जो दुःखवडे सुख थाय तो रागवडे मोक्ष थाय.
रागवडे मोक्ष मानवो ते तो दुःखी थवानो
रस्तो छे.
रागथी भिन्न आत्माने साधवो ते सुखनो
रस्तो छे.
* * *
चैतन्यस्वरूपनी स्वानुभूतिमां रमता
ज्ञानीओने देखीने मुमुक्षुने स्वानुभवनी प्रेरणा
जागे छे.
दुनियामां गमे त्यां होय–मुमुक्षु जीव
पोताना आत्महितना ध्येयने कदी भूलतो नथी,
के ढीलुं करतो नथी.
आनंदना धाममां शोक शा?
सुखना धाममां दुःख शा?
ज्ञानना धाममां अज्ञान शा?
मुक्तिना मार्गमां मुंझवण शी?
ज्ञानभाव छे सुखनुं धाम;
रागतणुं त्यां शुं छे काम?
आतमलक्ष्मी खोल खजाना;
जो तुं चाहे मोक्षमें जाना.
* * *
स्वने जाणुं परने जाणुं;
स्वमां परने कदी न मानुं.
* * *
सुखने ईच्छुं दुःखथी डरुं;
मिथ्या भावो कदी न करुं.
* * *
ब्रह्म–औषधि
भोगोपभोग सामग्रीथी जीवने कांई
लाभ नथी; ए तो उलटा तुष्णा वधारनार छे.
कामजवरनो नाश ब्रह्मरूपी उत्तमऔषधिना
सेवन वडे ज थाय छे, विषयभोगो वडे नहीं.
माटे सूज्ञमनुष्योए ब्रह्मपद–सिद्धपद प्राप्त करवा
माटे ब्रह्मनुं सेवन करवुं जोईए.
* * *
ज्ञानीनी सेवा रागद्वेष वडे थती नथी.
ज्ञानीनी सेवा ज्ञानभाववडे ज थाय छे. रागथी
भिन्न ज्ञानभावरूपे जे परिणम्यो तेणे ज