Atmadharma magazine - Ank 341
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : आत्मधर्म : फागण : २४९८
भाई! संसारनी तो आवी ज स्थिति छे. एनी क्षणभंगुरतानो जो
खरोखरो कारमो घा लागे तो–तो जीव क्षणभंगुरताथी पाछो वळीने शाश्वत
चैतन्यधाममां आवी जाय! आवा प्रसंगे मात्र मोहने लीधे आघातथी वैराग्य
थाय ते साचो वैराग्य नथी; जेनाथी साचो वैराग्य थाय तेनाथी तो परिणति
विरक्त थईने पाछी वळी जाय.
भाईश्री नागरदास रामजीभाई भायाणी उ. वर्ष ८२ (तेओ शांतिलाल वगेरेना
पिताजी) ता. २८–१–७२ ना रोज विलपार्ला मुकामे स्वर्गवास पाम्या छे. तेओ
लाठीना अग्रगण्य मुमुक्षु हता, ने लगभग पचास वर्षथी गुरुदेवना परिचयमां
आव्या हता. गत आसो मासमां मुंबई मुकामे गुरुदेवे तेमना घरे पधारीने दर्शन
दीधा तेथी तेमने घणी प्रसन्नता थई हती. स्वर्गवासनी आगली राते तेमणे
आखा घरने बेसाडीने मांगळिक संभळाव्युं हतुं. तेओ एकवाग्या सुधी वातचीत
करता हता, ते पछी एकने दशमिनिटे स्वर्गवास पाम्या.
वडदलानिवासी चुनिलाल लल्लुभाई शेठ (उ. वर्ष ९०) ता. २९–१–७२ ना रोज
स्वर्गवास पाम्या छे. गुरुदेव साथेना संघमां तेमणे तीर्थयात्राओ करी हती;
अंतिम घडी सुधी तेओ प्रेमपूर्वक आत्मधर्म वांचता हता.
लाठीना भाईश्री प्रेमचंद पानाचंद भायाणी (उ. वर्ष ७०) ता. प–२–७२ ना
रोज घाटकोपर मुकामे स्वर्गवास पाम्या छे. तेओ लाठी मुमुक्षुमंडळना अग्रगण्य
वडील हता; लांबा वखत सुधी सोनगढ रहीने गुरुदेवना सत्संगनो लाभ लीधो
हतो; ने गुरुदेव लाठी पधारे त्यारे लाभ लेवानी घणी होंश हती.
वांकानेरना भाईश्री वृजलाल कळशचंदना मातुश्री माह सुद १२नी रात्रे
स्वर्गवास पाम्या छे. सम्यग्दर्शन पुस्तक चोथुं तेमने प्रिय हतुं. स्वर्गवासनी राते
‘आत्माधर्म’ मांथी समाधिमरण टाणे साधकनी शूरवीरतानुं वर्णन सांभळीने
प्रसन्न थया हता.
––संसार एटले ज क्षणभंगुर भावोनो भंडार! आ चैतन्यतत्त्व ज एक एवुं छे
के जे पोतानी चैतन्यसत्ताने कदी छोडतुं नथी, सदाय चैतन्यभावे जीवतुं ने जीवतुं
ज रहे छे. अहा! आवुं चैतन्यतत्त्व लक्षगत करे एने मरण क्यांथी होय? तेथी
श्रीगुरु कहे छे के हे भाई! तारे जन्म–मरणनां दुःखोथी बचवुं होय तो तारा
महान चैतन्यतत्त्वने लक्षगत करीने अनुभवमां ले. एने अनुभवतां ज परम
आनंदथी तने एम थशे के ‘अब हम अमर भये न मरेंगे.’