Atmadharma magazine - Ank 342a
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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मुमुक्षुनुं जीवन
[संपादकीय]
आत्माने साधवा माटे तत्पर मुमुक्षुनां परिणाम केवा उज्वळ होय, आत्माने साधवा
माटे तेनी धगश केवी होय, देव–गुरु प्रत्ये ने साधर्मी प्रत्ये तेनो उमंग केवो होय, जगत प्रत्ये
तेने उदासीनता केवी होय!–ते बधुंय गुरुदेव आपणने सौने अवारनवार प्रतिबोधे
छे...मुमुक्षुओ आनंदथी ए शिखामण झीले छे.
गुरुदेवना श्रीमुखथी झीलेला, हितशिखामणना दश बोल अगाउ आत्मधर्ममां आवेला,
ते फरीने आ अंकमां पण आप्या छे. बधा ज मुमुक्षुओए गुरुदेवनी आ शिखामण वांचीने
खूब प्रसन्नता व्यक्त करी छे...अने गामेगाम...घरेघरे आ वात प्रचार पामे तेवी भावना
व्यक्त करी छे. आ हितशिखामण छापेलां पानां गुरुदेवे स्वहस्ते सेंकडो मुमुक्षुओने आप्या छे.
अहा, आ काळे आवी वीतरागी शिखामण आपीने धर्मप्रेरणा देनारा संत मळवा ते
मुमुक्षुनां महान भाग्य छे...आत्माने साधवानो आ सोनेरी अवसर छे. आ दश बोलनी
हितशिखामण अनुसार पोतानां परिणाम करनार मुमुक्षुजीव जरूर आत्महित पामशे.

एक बीजी वात : आ कळिकाळमां वीतरागदेवनो परम सत्यमार्ग क््यारेक–क््यारेक
प्रसिद्धिमां आवे छे, ने त्यारे रूढिगत जीवो द्वारा तेनो विरोध पण थाय छे. साचा मुमुक्षुओ तो
गमे तेवी कटोकटी वच्चे पण पोताना हितने माटे सत्यमार्गने वळगी रहे छे. प्राण भले छूटे
पण सत्यमार्गने तेओ छोडता नथी. सौराष्ट्रमां सं. १९९९ दरमियान गुरुदेवना विहार वखते
आवी परिस्थिति ऊभी थयेली, ने मुमुक्षुओ सत्यमार्गने द्रढपणे वळगी रह्या; अंते ते वखतना
विरोध करनारा घणा पण पश्चाताप पूर्वक सत्य मार्गमां आव्या, तेओ आजे गुरुदेवनी
छायामां आनंदथी आत्महितना मार्गने उपासी रह्या छे, ने पोताने धन्य–धन्य समजे छे.
फरीने, गुजरातना विहार वखते पण मुमुक्षु जीवो एवी कटोकटीनी परिस्थितिमां
आव्या छे; पण मुमुक्षुजीवो सत्यमार्गने द्रढपणे वळगीने आत्महितमां उद्यमी रहेशे. जे
अचिंत्य महान चैतन्यवस्तुने साधवानी छे, जे सत्य धर्मने साधवानो छे तेनी पासे जगतनी
कोई परिस्थिति मुमुक्षुने मुंझवी शकती नथी, सत्यथी डगावी शकती नथी;
पंचपरमेष्ठीभगवंतो एना साथीदार छे.
–ब्र. ह. जैन