Atmadharma magazine - Ank 345
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 4 of 45

background image
सिद्धना लक्षे अपूर्व मंगळ सहित साधक थईने
अपूर्वभावे समयसारनी शरूआत
समयसारनी पहेली गाथामां सर्वे सिद्धभगवंतोने वंदन करीने
शरूआत करी छे, तेनी टीकामां सौथी पहेलांं मंगळसूचक ‘अथ’ शब्द छे.
अथ’ एटले के हवे; अत्यार सुधी जे वीत्युं ते रीते नहि पण हवे नवी
अपूर्व शरूआत थाय छे; साधकभाव नवो प्रगटीने अपूर्वभावे सिद्धपणुं
आत्माना स्थापीने आ समयसार शरू थाय छे. साधकभाव सहित आ समयसार
संभळावीए छीए, ने तुं पण तरत ज जेवो कहीए तेवो अनुभव करीने, साधक
थईने अपूर्वभावे आ समयसार सांभळजे. बीजुं बधुं भूली जा....ने ज्ञानमां
एकाग्र थईने सिद्धोनी भावस्तुतिपूर्वक आ समयसारने सांभळ. समयसारना
सांभळनारनो मोह नाश न थाय एम बने नहि. अहो, हुं हवे साधक थयो छुं, हुं
ज पोते साध्य ने हुं पोते साधक–एम अंतरमां पर्यायने एकाग्र करीने
समयसारमां कहेला शुद्धात्माने अनुभवमां लेजे. अहो, आ तो अनंता सिद्धोने
आंगणे बोलाववा छे–तेमां विकल्पनो अंश पालवे नहि. विकल्पथी जुदो पडीने,
ज्ञानने अंतरमां वाळीने शुद्धआत्माने लक्षमां लईने साधक थयो त्यां तेनी
ज्ञानदशामां अनंतासिद्धोनो स्वीकार थयो. अनंतकाळमां पूर्वे नहोतो थयो एवो
अपूर्व साधकभाव हवे शरू थयो.–आवा भावो एक
‘अथ’ शब्दमां भर्या छे.
समयसारमां तो हीरा भर्या छे, पोताने अंदर भान थाय त्यारे एनी किंमत थाय
तेवुं छे.
समयसारनी सत्तरमी वखत शरू थयेला प्रवचनो, श्रोताओ एवा अपूर्व
भावे सांभळे छे के जाणे पहेली ज वार सांभळता होईए! गुरुदेव पण आ
वखते खूबखूब खीले छे. अहा! रागथी जुदी पडेली मारा ज्ञानपर्यायमां एटली
मोकळाश छे के अनंता सिद्धोने एकसाथे तेमां हुं बिराजमान करुं छुं. हुं नानो
नथी. अरे, मारी एक पर्यायमां अंनता सिद्धोने समाडुं एवो मोटो चिदानंद हुं छुं.
–अमारुं चैतन्यघर एवुं सरस मोटुं छे के जेमां सिद्ध भगवान जेवा मोटा महेमान
पधारे.–आम पोताना स्वभावनी प्रतीतपूर्वक धर्मीजीव समयसार सांभळे छे;
अने बीजा श्रोताओ पण समयसारना भावोनुं घोलन करतां करतां आवो
साधकभाव जरूर प्रगट करे छे.–आवी संधिपूर्वक आ समयसारनी कथनी छे.
स्वसंवेदनज्ञाननी धारापूर्वक आ समयसार रचाय छे, ते तुं पण एवा ज भावथी
सांभळजे.