अनेक प्रकारनां भयानक दुःखो, तेनाथी छूटवा तुं केवा फांफा मारी रह्यो छे? अने छतां
हजी सुधी तारुं दुःख मटयुं नथी.–तो शुं करवुं? वीतरागी सन्तो तने एक एवी सरस
मजानी औषधि बतावे छे के जेना सेवनथी सहजमात्रमां तारा बधाय दुःखो अलोप
थई जशे.–कई छे ते औषधि?–सांभळ!
दुःख रहेतुं नथी. आ रीते परम सुख देनार शुद्धचिद्रूपनुं स्मरण ते ज भवदुःखने
मटाडवानुं अमोघ औषध छे. ज्यां एनुं स्मरण कर्यु.....के बधाय दुःख अलोप!
मळ्युं. सर्वज्ञ भगवाननी वाणीरूपी श्रतुसमुद्रनुं मथन करी–करीने, कोईपण प्रकारे
विधिथी में, पूर्वे कदी नहीं प्राप्त करेलुं अने परमप्रिय एवुं शुद्ध चैतन्यरत्न प्राप्त करी
लीधुं छे. चैतन्यरत्ननी प्राप्तिथी मारी मति स्वच्छ थई गई छे; तेथी मारा चैतन्य
सिवाय अन्य कोई द्रव्य मने मारुं भासतुं नथी. आ चैतन्यरत्नने जाणी लीधा पछी
हवे जगतमां मारा चैतन्यरत्नथी ऊंचो बीजो एवो पदार्थ नथी के जे मारे माटे ज्ञेय
होय–द्रश्य होय के गम्य होय. जगतमां चैतन्यनी अन्य बीजुं कोई कार्य नथी, बीजुं
कोई वाच्य नथी, बीजुं कोई ध्येय नथी, बीजुं कांई श्रवणयोग्य नथी, बीजुं कांई
प्राप्त करवा जेवुं नथी. बीजुं कोई श्रेय नथी, बीजुं कोई आदेय नथी.