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* मार्ग खुल्लो छे *
धर्मीनी पर्याय अंतर्मुख थईने एम अनुभवे छे के
गति, राग वगेरे विभावोथी रहित एक परम
चैतन्यभाव हुं छुं. पर्यायना भेदना कोईपण विकल्पो,
तेनो हुं कर्ता नथी, तेनुं कारण हुं नथी, तेनो करावनार
के अनुमोदनार पण हुं नथी. एक सहज परमस्वभाव
ज हुं छुं–एम शुद्धनिश्चयनय देखे छे. शुद्धनिश्चयनय
अने तेनो विषय अभेद छे, तेमां भेद रहेतो नथी,
विकल्प रहेतो नथी. शुद्धनयवडे आवा अभेद आत्मानी
अनुभूति करवी ते ज परम शांतिरूप मोक्षनो मार्ग छे.
प्रश्न:–अत्यारे तो आवो मार्ग चालतो नथी!
उत्तर:–कोण कहे छे नथी चालतो? पोतानी पर्यायमां जे
आत्मा आवो अनुभव करे तेने अत्यारे पण
पोतामां आवो मोक्ष मार्ग चाली रह्यो छे....तेनी
परिणति ए ज मोक्षमार्ग छे; धर्मीने अंतरमां
आवो मार्ग खूली गयो छे. मोक्षना महासुखने
चाखतो–चाखतो ते मोक्षना मार्गे जई रह्यो छे.
धन्य मार्ग! धन्य चालनार!
तंत्री: पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार * संपादक : ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २४९८ श्रावण (लवाजम : चार रूपिया) वर्ष २९ : अंक १०