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निर्विकल्प थईने अनुभवे छे. अहा, धन्य छे ते अनुभवनी पळ!
धर्मी गृहस्थ पण घरमां क्यारेक आवो निर्विकल्प अनुभव करे छे.
अनुभव करवानो अवसर आवे. स्वद्रव्य केवुं छे तेने ओळखीने ते
अनुभव कर्यो एटले ते उपादेय थयुं; अने तेनाथी विरुद्ध बधा
विभागो हेय थई गया, तेमनुं लक्ष छूटी गयुं.
भंगरूप व्यवहारभावो ते अपरमभाव छे. परमभावरूप जे शुद्धतत्त्व
तेना अनुभवथी प्रचुर आनंदसहित आत्मानो निजवैभव प्रगटे छे;
ते मोक्षमार्ग छे. माटे परमभाव ज अनुभव करवा योग्य छे.
नथी, एक सहज परमतत्त्वनुं ज आलंबन छे; तेना अनुभवथी ज
थाय छे.
छे; शुद्ध द्रव्य – गुण – पर्याय वगेरेना विचारमां साथे विकल्प आवे
छे, ते विकल्पनो खेद छे, तेनी होंश नथी, तेना प्रत्ये उत्सुकता नथी,
शुद्ध स्वभाव तरफनी ज होंश ने उत्सुक्ता छे. अरे, सीधेसीधा परम
स्वभावमां ज पहोंची जवानी भावना छे, तेना ज अनुभवनुं लक्ष
छे, पण वच्चे भेद– विकल्पो आवी जाय छे तेनी भावना नथी.