फोन नं. ३४ “आत्मधर्म” Regd. No. G. 182
दश मित्रो भेगा थईने चर्चा करता हता के आपणा जीवननुं ध्येय शुं छे?
एक मित्र कह्युं: अत्यारे बी. ए भणुं छुं ने खूबखूब भणीने अमेरिका जवानुं ध्येय छे.
बीजा मित्रे कह्युं: आपणे तो परदेश जवा करतां भारतमां ज रहीने स्वदेशनी सेवा
करवानुं ध्येय छे.
त्रीजो मित्रे कह्युं:अत्यारे रक्षानो मोटो प्रश्न छे तेथी आपणे तो लश्करमां सेवा आपीने,
दुश्मनदेशोने बतावी आपवुं छे के भारतना युवानो केवा बहादूर छे!!
चोथो मित्र: आपणे तो वेपारमां झंपलावीने एक करोड रूा. भेगा करवानुं ध्येय छे.
पांचमां मित्र कहे: आपणे धन भेगुं करवानी के परदेशनी अभिलाषा नथी, पण
आपणने मळेलुं भणतर बीजा बाळकोने शीखडाववुं ते ध्येय छे.
छठ्ठो मित्र कहे: आपणने तो परभवनी चिन्ता छे, एटले सारां सारां कामो करीने
बीजा भवे स्वर्गमां जईए एवुं ध्येय छे.
सातमो मित्र कहे: परभवनी कोने खबर छे! परभवनी चिन्ता करी करीने दूबळा थवा
करतां आपणे तो अत्यारे मोजमजाथी जीववुं ने जींदगीमां आनंद
भोगववो ए ध्येय छे.
आठमो मित्र: आपणे तो बस, खाधेपीधे सुखी रहीए ने थई शके एटली साधु
संतोनी सेवा करीए–ए सिवाय जीवनमां बीजुं शुं जोईए?
नवमो मित्र: दुनियाना जीवो अत्यारे बहु दुःखी छे, ते दुःखी जीवोनी सेवामां जीवन
होमी देवुं – एवुं आपणुं ध्येय छे.
दशमो मित्र: मने तो जीवनमां एक ज भावना छे के मारा आत्माने प्राप्त करुं!
आत्मानी शुद्धता प्राप्त करीने साची शांति पामुं ने आ भवदुःखोथी छूटुं –
ए ज मारा जीवननुं ध्येय छे.
दसमा मित्रनी उत्तम वात बधा मित्रोए उत्साहथी स्वीकारी लीधी. बंधुओ,
सत्समागम अने जैनधर्मनो आवो उत्तम योग पामीने आत्मा पोतानी शांतिने
अनुभवे ने मोक्षने साधे ए ज जीवननुं साचुं ध्येय छे.
प्रकाशक : (सौराष्ट्र) प्रत : ३२प०
मुद्रक : मगनलाल जैन, अजित मुद्रणालय: सोनगढ (सौराष्ट्र) : अषाढ [३५४]