Atmadharma magazine - Ank 356
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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३५६
रागभाव तो अनादिथी जीव करे ज छे;
तेनुं फळ संसार छे. राग करवो तेमां
कांई शूरवीरता नथी; शूरवीरता तो रागथी भिन्न
एवा वीतरागी चैतन्यभावमां छे; भेदज्ञान वडे
आनंदमय चैतन्यपरिणति थवी ते ज साचो
पुरुषार्थ छे, ते ज मोक्ष माटेनुं साचुं पराक्रम छे.
समकिती धर्मात्मा शूरवीरपणे वीतरागमार्गने
साधे छे. एनी ज्ञानचेतना रागथी कोई जुदुं ज
काम करे छे. ए बहारथी न देखाय. पण बीजा
एने देखे के न देखे एनी अपेक्षा ज्ञानीने क्यां छे?
ए तो जगतनी अपेक्षा छोडीने पोते पोतामां
एकलो–एकलो ज्ञानचेतनाना आनंदने वेदे छे...
आनंदनो स्वाद लेतो लेतो भगवानना मार्गे
चाल्यो जाय छे.
तंत्री: पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार * संपादक: ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २४९९ जेठ (लवाजम: चार रूपिया) वर्ष ३०: अंक ८