Atmadharma magazine - Ank 357
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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३प७
– कोने माटे?
घणा जीवो पुत्रादिनी ममता खातर, धन कमाईने पुत्रने
आपी जवा माटे, आखी जींदगी पाप करी करीने धन कमाववामां
ज वेडफी नांखे छे, ने आत्मानुं हित चूकी जाय छे. तेने ज्ञानी कहे छे
के हे भाई! –
पुत्र कपूत तो संचय शानो?
पुत्र सपूत तो संचय शानो?
जो तारो पुत्र कुपुत्र होय तो तेने माटे धननो संचय शा माटे
करवो? केमके ते तो खोटा मार्गे विषय – कषायोमां धन वेडफी देशे.
अने जो तारो पुत्र सुपुत्र छे – संस्कारी ने पुण्यवान छे तो तेने
माटे पण तारे धननो संचय करवानी जरूर नथी, केमके एने तो एना
पुण्यबळथी ज संपत्ति मळी रहेशे (पुत्रनी जेम बधानुं समजी लेवुं.)
आम बन्ने प्रकारे तारे धनसंचयनी जरूर नथी; तो पछी
पाप कोने माटे? मफतनो तुं पापनो संचय न कर; ते लक्ष्मी वगेरेनो
मोह घटाड; ने तेने माटे जीवनने पापमां वेडफी देतां तुं आत्महितना
उद्यममां लागी जा.
तंत्री: पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार * संपादक: ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २४९९ अषाढ (लवाजम: चार रूपिया) वर्ष ३०: अंक ९