Atmadharma magazine - Ank 362
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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फोन नं. ३४ “आत्मधर्म” Regd. No. G. 128
• घडीक विचार तारुं स्वरूप, तो तुं पामीश सुख अनूप •
जिनवर पुत्र जिन मारा देव
रु मारो तुं मित्र; रु करुं एनी सेव; रु
ईच्छे जो सुख ध्यान धरवानी
तो थै जा मुक्त मने हो टेव.
द्रव्य मारुं शुद्ध राजा नमे वळी
रु गुणो छे शुद्ध; रु नमे छे ईन्द्र; रु
ओळखी एने भक्त बोलो सौ
थाउं हुं बुद्ध. जय जिनेन्द्र.
केवळज्ञान त्यां मोक्षने वरवा
रु मोटुं छे सुख; रु भवथी तरवा; रु
ज्यां अज्ञान त्यां समकित पामो
एकलुं दुःख. खरूं सुख लेवा.
वीतरागी ज्ञान गणधरदेव
रु तोडे अज्ञान; रु करे जेनी सेव; रु
आतमवैभव एवा जिनदेव
आपे महान. ते मारा देव
• चेतनदेवा आनंदमेवा, करुं तारी सेवा सिद्ध पद लेवा. •
प्रकाशक : (सौराष्ट्र) प्रत : ३५००
मुद्रक : मगनलाल जैन, अजित मुद्रणालय : सोनगढ (सौराष्ट्र) : मागशर (३६२)