Atmadharma magazine - Ank 364
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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फोन नं. : ३४ आत्मधर्म Regd. No. G. 128
• समाजना वडीलोनुं ने युवानोनुं कर्तव्य •
बंधुओ, जैनसमाजने माटे एक जरूरी वात आजे फरीथी रजु करीए
छीए. वात नानी पण अत्यंत जरूरनी छे; आत्मधर्म अंक नं. : ३६२मां
गुरुदेवना उद्गार साथे तेनी थोडीक रजूआत करी हती. ए लेख वांचीने घणा
जिज्ञासु वडीलोए, तेमज युवान भाई–बहेनोए तेमां पोतानी संमति अने
प्रसन्नता प्रगट करी छे, ने आ प्रमाणे थाय ते उत्तम छे. खरेखर, धन सामे न
जोतां धर्मसंस्कार सामे जोवानी मुख्यता राखवी जोईए–ए दरेक जैनगृहस्थनुं,
ने भाई–बहेनोनुं खास कर्तव्य छे. बंधुओ, बहेनो! तमे पोते ज जो
धर्मसंस्कारवाळुं स्थान पसंद करशो तो तमारी ते पसंदगीमां वडीलो पण
धन्यवादपूर्वक तमने आशीर्वाद आपशे. तमारे तमारा धर्मसंस्कारनी रक्षा माटे
तथा वृद्धि माटे एम स्पष्ट कही देवुं जोईए के अमारा धर्मसंस्कारने ज्यां बाधा
आवे तेम होय तेवा स्थानमां अमारो संबंध अमे पसंद नहि करीए. ‘भले
कुंवारा रहेशुं पण जैनसंस्कार छोडीने बीजे तो नहीं ज जईए’–आवी
धर्मद्रढता तो जिज्ञासुमां होवी ज जोईए. धर्मना भोगे धन अमारे नथी
जोईतुं. श्रावकना गुणोमां ‘समदत्ती’ नामनो एक गुण कह्यो छे एटले के
पोतानी कन्यानुं दान समानधर्मीमां करे, विधर्मीमां न करे. अहो, आवा सर्व
श्रेष्ठ जिनधर्मना संस्कार मळ्‌या तो आपणा संतानोने आपणे तेनाथी
छोडावीए...कुधर्मना कुवामां न नाखीए.
आ वातनो सौए स्वीकार करवा छतां केटलाक वडीलोए मुश्केली
बतावी छे के ‘समाजना पैसावाळा लोको सामान्य स्थितिवाळा माणसो साथे
संबंध बांधवा आतुर नथी, सौ पैसा सामे जुए छे!’ ते वडीलश्रीए रजू
करेली मुश्केलीमां तथ्य छे, आज समाजमां तेवी परिस्थिति देखाय छे, पण
धर्मप्रेमी वडीलो अने तेमना बहादूर संतानो हवे जागृत बनता जाय छे, तेओ
जागृत थईने आ बाबत मक्कमपणे हाथमां ल्ये, तेनो प्रचार करे, ने पोताना
घरेथी ज तेना पालननो मंगळ प्रारंभ करे, तो समाजमां महान जागृतिनुं अने
धर्मप्रभावनानुं एक उत्तम कार्य थशे. बहादूर युवानो जागो! ने वीरप्रभुना आ
अढीहजारमा निर्वाणमहोत्सवमां तमारुं कार्य संभाळो. –
जय महावीर
प्रकाशक : (सौराष्ट्र) प्रत : ३५००
मुद्रक : मगनलाल जैन, अजित मुद्रणालय : सोनगढ (सौराष्ट्र) : महा (३६४)