Atmadharma magazine - Ank 367
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २५०० आत्मधर्म : ४५ :
सोनगढसन्मुख दोडी रहेली मोटरमां बेठाबेठा दूरथी परमागम मंदिरना त्रण
उज्वळ शिखर उपर फरकी रहेला ध्वज रत्नत्रयमार्गनी सुंदर प्रेरणा आपता हता,
बस, हवे संसारथी छूटीने जाणे रत्नत्रयना स्वधाममां आव्या एवा संतुष्टभावनी
उर्मिओ गुरुदेवना मुख पर झळकती हती. गुरुदेव पधारतां सुवर्णधाम पुन: शोभी
उठयुं, सर्वत्र नवचेतना आवी गई. प्रवचनमां शांतरस झरी रह्यो छे ने गुरुदेव
वारंवार कहे छे के अहीं तो हवे शांतिथी स्वाध्यायनो काळ छे! अहा, अत्यारे आत्माने
साधी लेवानो अवसर छे.
* * * * *
श्यामदास नामना एक हरिजनभाई (जेओ हरिजनोना गुरु छे ने उमराळाना
छे) तेओ पू. गुरुदेव प्रत्ये भक्ति धरावे छे, तथा पोताना हजारो भक्तोमां गुरुदेवे
बतावेला तत्त्वनो अने साचा देव–गुरु–धर्मनो प्रचार करवा प्रयत्न करे छे, मांसभक्षण
तेमज रात्रिभोजन अने कंदमूळ वगेरे पापो छोडावे छे; तेमणे ‘आत्मधर्म–प्रचारक
मंडळ’ स्थाप्युं छे, मुंबईमां पण तेमना भक्तो रहे छे. गुरुदेव मुंबई पधार्या त्यारे
वैशाख सुद बीजे ते मंडळ तरफथी पण गुरुदेवने अभिनंदन–पत्र आपवामां आव्युं
हतुं. तेमां लखे छे–
नितनित गुरुतणा जश गाय, साचा देव–गुरु–शास्त्रो दरशाय;
हे गुरुजी! वीतरागी तमारुं विज्ञान, गुरुमहिमा गायो रे;
एवो अनंत चोवीसीनो राह विश्राम पोतामां पायो रे.
* * * * *
विविध समाचार अने सूचनाओ
वर्द्धमान तीर्थंकरनी विहारभूमि वढवाण शहेरमां वीरप्रभुना २प००मा निर्वाण–
महोत्सवना वर्षमां नूतन भव्य जिनमंदिर बंधावानी तैयारीओ चाले छे; आ
माटे सुंदर जग्या लेवाई गई छे, ने शेठश्री तलकशीभाईना सुपुत्रो, शेठश्री
पोपटलालभाई वोरा, चीमनभाई घडियाळी, गीरधरभाई शाह वगेरे भाईओ
आ कार्यमां उत्साहथी रस लई रह्या छे. जिनमंदिरनुं शिलान्यास तुरतमां
थवानी आशा छे.