Atmadharma magazine - Ank 367
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २५०० आत्मधर्म : ४७ :
आनंद साधवाना अवसरमां खेद शो? मुमुक्षुने तो निजानंदनी प्राप्तिना अवसरमां
परम उत्साह होय.
अरे मुमुक्षु! तने वळी खेद शेनो? जगतमां एवुं ते शुं दुःख छे के तारे खेद
करवो पडे? तारे तो अत्यारे आत्माने साधवानो महा आनंदप्रसंग छे....तो प्रसन्नचित्ते
आत्माने साधवामां लागी जा. खेद छोड! जो तो खरो, तने केवा सरस देव–गुरु मळ्‌या
छे? केवो सरस मार्ग मळ्‌यो छे! केवा साधर्मी मळ्‌या छे! ने अंदर केवो मजानो सुंदर
आत्मा बिराजी रह्यो छे! जगतमां आवो सरस योग मळ्‌यो, पछी हवे खेद करवानुं
क््यां रहे छे? खेदनी टेव छोड....ने महान उल्लासथी, शांतभावे तारा आनंदधाममां
जो...तारुं जीवन अपूर्व चेतनवंतु बनी जशे.
जैनधर्मनी मूळ वस्तु–सर्वज्ञ
गुरुदेव घणीवार कहे छे के “ श्रुतज्ञानीना हृदयमां सर्वज्ञ–तीर्थंकर बिराजे छे–ए
वात घणा वर्ष पहेलांं सांभळेली त्यारे मने खूब गमेली.” गुरुदेवने पहेलेथी सर्वज्ञता
उपर जोर घणुं; त्यारे एमनाथी विरुद्ध विचारवाळाने सर्वज्ञनी प्रतीतमां ज वांधा.
दीक्षा पछी थोडा ज काळमां आ संबंधी मतभेद थवा लाग्या. गुरुदेव भारपूर्वक कहे छे के
जेणे सर्वज्ञनो निर्णय कर्यो छे तेना अनंतभव सर्वज्ञे दीठा ज नथी, केमके एना हृदयमां
तो सर्वज्ञ बेठा छे. जेना हृदयमां सर्वज्ञ बेठा तेने अनंतभव होय नहि. ज्ञानस्वभावना
निर्णयपूर्वक सर्वज्ञनो साचो निर्णय थाय छे. सर्वज्ञना निर्णय वगर भगवानना
मार्गनो निर्णय थाय नहि, भगवाननी वाणीनो (शास्त्रनो) निर्णय थाय नहि. एक्केय
तत्त्वनो निर्णय सर्वज्ञना निर्णय वगर थाय नहि. सर्वज्ञनो निर्णय करतां
ज्ञानस्वभावमां बुद्धि घूसी जाय छे, त्यारे मार्ग हाथ आवे छे. जैनशासननी आ
मूळभूत वस्तु छे. जुओने, समयसारमां वक्ता अने श्रोता बंनेना आत्मामां
सर्वज्ञस्वभावी सिद्धने स्थापीने ज अपूर्व शरूआत करी छे. आत्मामां सिद्धने स्थापतां
साधकभाव शरू थई जाय छे.
एक बाळकनी मुंझवण
एकवार एक बाळके आवीने गुरुदेवने पूछयुं –
गुरुदेव! आप धोळा ने हुं काळो–एम केम?
गुरुदेव कहे–भाई, आत्मा क््यां काळो के धोळो छे? हुं जीव ने तुं पण