Atmadharma magazine - Ank 372
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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फोन नं. ३४ आत्मधर्म Regd. No. G. 128
• महावीरनो सन्देश •
आत्मा सदा उपयोगस्वरूप छे.
ज्ञान ते आत्मानुं जीवन छे.
दरेक आत्मा स्वतंत्र पोताथी पूर्ण छे.
दरेक आत्मामां पोताना अनंत गुण छे.
तमे तमारी प्रभुताने ओळखो.
परथी भिन्नता जाणी स्वसन्मुख बनो.
आत्मशक्ति संभाळीने वीर बनो.
जीवना अशुद्धभावोथी ज संसार छे.
जीव शुद्धभाववडे मुक्ति पामे छे.
शुद्धता आत्माना स्वाश्रयथी थाय छे.
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र मोक्षमार्ग छे.
ते त्रणे आत्माना ज आश्रये छे.
ते शरीरना के रागना आश्रये नथी.
आ ज मार्गे अमे मोक्ष पाम्या छीए,
अने तमारे माटे पण आ ज मार्ग छे.
–आ छे भगवान महावीरनो संदेश.
भगवानना २५००मा निर्वाण
महोत्सव प्रसंगे तेमनो आ संदेश झीलीने
आपणे पण तेमना मार्गे जईए.
अमे तो जिनवरनां संतान.
जिनवर पंथे विचरशुं.
• अद्भुत आत्मा •
आतमा...आतमा...आतमा...रे...
अहो! अद्भुत चिदानंद आतमा...
जेने देखतां थईश परमातमा रे,
अहो, अद्भुत चिदानंद आतमा. १.
भूल मा भूल मा भूल मा रे
तारी चिदानंद वस्तुने भूल मा!
परने पोतानी तुं मान मा रे....
अहो, अद्भुत चिदानंद आतमा. २.
तारामां शांत था, धर्मात्मा जीव था,
स्वरूप–बहार तुं भम मा रे...
तारी चिदानंद वस्तुने भूल मा...३.
सम्यग्द्रष्टि था भ्रम मटाडी,
आनंदस्वरूपे तुं लीन था रे....
अहो, अद्भुत चिदानंद आतमा. ४.
आनंदनो दरियो ज्ञानस्वरूपी,
ऊजळे एमां तुं मग्न था रे...
तारी चिदानंद वस्तुने भूल मा. ५.
आवी गयो छे अवसर रूडो,
शांतस्वरूपे तुं स्थिर था रे...
अहो, अद्भुत चिदानंद आतमा. ६.
प्रकाशक : (सौराष्ट्र) प्रत : ३६००
मुद्रक : मगनलाल जैन, अजित मुद्रणालय : सोनगढ (364250) : आसो (३७२)