कोईवार दीन–परिणाम थई जता हशे....तो हे मुमुक्षु–वडील! तमने ते शोभतुं
नथी. शरीरनो तो एवो स्वभाव ज छे के वृद्धता–रोगादि थाय. तेनी सामे
आत्मानो स्वभाव विचारीने उत्साह–परिणाम करो.
राखवो. क्रोध ते रोग छे, शांति ते सुख छे.
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अने परिवार भले छूटशे पण ए देव–गुरु–धर्म मारा अंतरमांथी कदी नहि छूटे.–आम
विचारीने होंशथी–उत्साहथी तेमनी आराधना करवी.
थाय,–ए तारा सदायना साथीदार ने साचा हितस्वी छे.
–तो मुमुक्षु कहे छे–मारी पासे वीतरागी देव–गुरु–धर्म तो छे, तेओ मने
आत्मानी अपूर्व अनुभूति आपे छे.–जो एनाथी सारुं बीजुं कांई जगतमां होय
तो मने आपो.
–एनाथी सारूं तो जगतमां बीजा कांई नथी, के जेने हुं ईच्छुं.
आत्मानी निर्विकल्प अनुभूति करवी, ए ज एक मारी भावना छे...ए ज