Atmadharma magazine - Ank 378
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २५०१ आत्मधर्म : ६७ :
कोटा (राजस्थान) मां ता. २४–५–७५ थी ता. ८–६–७५ सुधी वीतरागविज्ञान
–शिक्षणशिबिरनुं आयोजन छे. ता. १ थी ८ जून सुधी पू. गुरुदेवनो कोटा पधारवानो
कार्यक्रम छे.
[निर्वाण महोत्सव निमित्ते आवेल रकमोनी यादी पानुं ४८ थी चालु]
५८८ योगेशचंद्र राजेशचंद्र जैन अलीगंज ५९२ रश्मीकांत वृजलाल जैन मुंबई
५८९ अजीतकुमार चीमनलाल जैन पादरा ५९३ पूर्णिमाबेन रश्मीकांत जैन मुंबई
५९० रसिकलाल नागरदास मोदी मुंबई ५९४ ईन्दिराबेन जमनादास शाह मुंबई
५९१ लीलावंतीबेन वृजलाल मोदी मुंबई (ता. २९–३–७५ सुधी)
[आ उपरांत अंबेशकुमार जैन मुंबई तरफथी रूा. १०१) आव्या छे.]
* आत्मधर्म–गुजराती वर्ष कारतकथी आसो: लवाजम छ रूपिया छे. गमे त्यारे
ग्राहक थवाय छे, पण अंको कारतकथी आसो सुधीना मळे छे.
सरनामुं: आत्मधर्म कार्यालय, सोनगढ (सौराष्ट्र: )
–: प......ड......का.....र:–
आत्मानो स्वानुभव थतां समकिती जीव केवळज्ञानी
जेटलो ज निःशंक जाणे छे के आत्मानो आराधक थयो छुं ने
प्रभुना मार्गमां भळ्‌यो छुं, स्वानुभव थयो ने भवकटी थई
गई; हवे अमारे आ भवभ्रमणमां रखडवानुं होय नहि.
–आम अंदरथी आत्मा पोते ज स्वानुभवना पडकार करतो
जवाब आपे. अनंतगुणना ऊजळा किरणोथी झगझगाट
करतो चैतन्यसूर्य ऊग्यो–ते केम छानो रहे! अशांतिमांथी
शांति थई, दुःख मटीने सुख थयुं, अज्ञान मटीने ज्ञान थयुं,
बंध टळीने मोक्षभाव शरू थयो एवी दशा थतां आखो
आत्मा पलटी गयो.....ते आत्मा पोते स्वानुभूतिना पडकार
करतो स्वसंवेदनमां पोताने प्रत्यक्ष जाणे छे.