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उनमें स्व. श्री शांतिलाल रतिलाल शाहकी ओरसे ५०
रु. १०=०० रखा गया है।
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अपने लाभ हेतु झेले हुए
प्रवाहको श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवने गुरुपरम्परासे आत्मसात् करके
युक्ति , आगम और स्वानुभवमय निज वैभव द्वारा सूत्रबद्ध किया; और
इस प्रकार समयसारादि परमागमोंकी रचना द्वारा उन्होंने जिनेन्द्रप्ररूपित
विशुद्ध अध्यात्मतत्त्व प्रकाशित करके वीतराग मार्गका परम-उद्योत किया
है
साधक संत आज भी उस पुनीत मार्गको प्रकाशित कर रहे हैं ।
उससे उनके सुप्त आध्यात्मिक पूर्वसंस्कार जागृत हुए, अंतःचेतना विशुद्ध
आत्मतत्त्व साधनेकी ओर मुड़ी
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वज्रवाणीके श्रवणका परम सौभाग्य प्राप्त हुआ था । उससे उनके
सम्यक्त्व-आराधनाके पूर्वसंस्कार पुनः साकार हुए । उन्होंने तत्त्वमंथनके
अंतर्मुख उग्र पुरुषार्थसे १८ वर्षकी बालावयमें निज शुद्धात्मदेवके
साक्षात्कारको प्राप्त कर निर्मल स्वानुभूति प्राप्त की । दिनोंदिन वृद्धिगत-
धारारूप वर्तती उस विमल अनुभूतिसे सदा पवित्र प्रवर्तमान उनका
जीवन, पूज्य गुरुदेवकी मांगलिक प्रबल प्रभावना-छायामें, मुमुक्षुओंको
पवित्र जीवनकी प्रेरणा दे रहा है ।
ज्ञात हुआ कि बहिनश्रीको सम्यग्दर्शन एवं तज्जन्य निर्विकल्प आत्मानुभूति
प्रगट हुई है; ज्ञात होने पर उन्होंने अध्यात्मविषयक गम्भीर कसोटीप्रश्न
पूछकर बराबर परीक्षा की; और परिणामतः पूज्य गुरुदेवने सहर्ष स्वीकार
करके प्रमोद व्यक्त करते हुए कहा : ‘बहिन ! तुम्हारी
सत्श्रवण, स्वाध्याय, मंथन और आत्मध्यानसे समृद्ध है । आत्मध्यानमयी
विमल अनुभूतिमेंसे उपयोग बाहर आने पर एक बार [(गुजराती) सं.
१९९३की चैत्र कृष्णा अष्टमीके दिन] उनको उपयोगकी निर्मलतामें
भवांतरों सम्बन्धी सहज स्पष्ट जातिस्मरणज्ञान प्रगट हुआ । धर्मसम्बन्धी
अनेक प्रकारोंकी स्पष्टताका
जिसकी पुनीत प्रभासे पूज्य गुरुदेवके मंगल प्रभावना-उदयको चमत्कारिक
वेग मिला है ।
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इत्यादि विविध आध्यात्मिक पवित्र विशेषताओंसे विभूषित पूज्य बहिनश्री
चंपाबेनके असाधारण गुणगम्भीर व्यक्ति त्वका परिचय देते हुए पूज्य
गुरुदेव स्वयं प्रसन्नहृदयसे अनेक बार प्रकाशित करते हैं कि :
नाथ उनको अंतरसे जागृत हुआ है । उनकी अंतरकी स्थिति कोई और
ही है । उनकी सु
जातिस्मरणज्ञान है । बहिन ध्यानमें बैठती हैं तब कई बार वह अंतरमें
भूल जाती हैं कि ‘मैं महाविदेहमें हूँ या भरतमें’ ! !....बहिन तो अपने
अंतरमें
प्रसिद्धि हो वह उन्हें स्वयंको बिलकुल पसन्द नहीं है । परन्तु हमें ऐसा
भाव आता है कि बहिन कई वर्ष तक छिपी रहीं, अब लोग बहिनको
पहिचानें ।....’’
है उन पूज्य बहिनश्री चंपाबेनके, उन्होंने महिला-शास्त्रसभामें उच्चारे
हुए
उत्कट भावना बहुत समयसे समाजके बहुत भाई-बहिनोंमें वर्तती थी ।
उस शुभ भावनाको साकार करनेमें, कुछ ब्रह्मचारिणी बहिनोंने पूज्य
बहिनश्री चंपाबेनकी प्रवचनधारामेंसे अपनेको विशेष लाभकारी हों ऐसे
जो वचनामृत लिख लिये थे वे उपयोगी हुए हैं । उन्हींमेंसे यह अमूल्य
वचनामृतसंग्रह तैयार हुआ है । जिनके लेख यहाँ उपयोगी हुए हैं वे
बहिनें अभिनन्दनीय हैं ।
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उसमें आत्मार्थप्रेरक अनेक विषय आ गये हैं । कहीं न रुचे तो आत्मामें
रुचि लगा; आत्माकी लगन लगे तो जरूर मार्ग हाथ आये; ज्ञानीकी सहज
परिणति; अशरण संसारमें वीतराग देव-गुरु-धर्मका ही शरण;
स्वभावप्राप्तिके लिये यथार्थ भूमिकाका स्वरूप; मोक्षमार्गमें प्रारम्भसे लेकर
पूर्णता तक पुरुषार्थकी ही महत्ता; द्रव्य
वाणीकी अद्भुत महिमा; मुनिदशाका अंतरंग स्वरूप तथा उसकी महिमा;
निर्विकल्पदशा
अलग ही कार्य करती रहती है; अखण्ड परसे
शाश्वत सुख प्रगट होता है;
प्रथम संस्करण पढ़कर हिन्दीभाषी अनेक मुमुक्षुओंने यह भावना प्रगट
की थी कि
इससे बहुत लाभान्वित हो । उस माँगके फलस्वरूप, ‘आत्मधर्म’ हिन्दी
पत्रके भूतपूर्व अनुवादक श्री मगनलालजी जैनके पास सरल एवं रोचक
हिन्दी भाषान्तर कराकर अभी तक इसके चार संस्करण (२६,०००
प्रतियां) प्रकाशित हो चूके हैं । अब यह पुस्तक अप्राप्य होनेसे तथा
उसके लिये मुमुक्षुओंकी माँगको लेकर इसका पंचम संस्करण (१०००
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धन्यवादके पात्र है ।
मूल्य कम करके २२ रुपया रखा गया है ।
प्रबल प्रेरणा पाकर अपने साधनापथको सुधास्यंदी बनायेंगे ।
१५-८-२०००
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प्रकार स्पष्टरूपसे समझाया है । मार्गकी खूब छानबीन
की है । द्रव्यकी स्वतंत्रता, द्रव्य-गुण-पर्याय, उपादान-
निमित्त, निश्चय-व्यवहार, आत्माका शुद्ध स्वरूप,
सम्यग्दर्शन, स्वानुभूति, मोक्षमार्ग इत्यादि सब कुछ
उनके परम प्रतापसे इस काल सत्यरूपसे बाहर आया
है । गुरुदेवकी श्रुतकी धारा कोई और ही है ।
उन्होंने हमें तरनेका मार्ग बतलाया है । प्रवचनमें
कितना मथ-मथकर निकालते हैं ! उनके प्रतापसे सारे
भारतमें बहुत जीव मोक्षमार्गको समझनेका प्रयत्न कर
रहे हैं । पंचम कालमें ऐसा सुयोग प्राप्त हुआ वह
अपना परम सद्भाग्य है । जीवनमें सब उपकार
गुरुदेवका ही है । गुरुदेव गुणोंसे भरपूर हैं,
महिमावन्त हैं । उनके चरणकमलकी सेवा हृदयमें
बसी रहे ।
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भवारण्यभीमभ्रमीया सुकृत्यैः
प्रदेयात् स मेऽनन्तकल्याणबीजम्
समं भान्ति ध्रौव्यव्ययजनिलसन्तोऽन्तरहिताः
महावीरस्वामी नयनपथगामी भवतु मे
तुभ्यं नमः क्षितितलामलभूषणाय
तुभ्यं नमो जिन भवोदधिशोषणाय
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गुरुदेवका अपार उपकार है। वह उपकार कैसे भूला
जाय ?
भवोदधितारणहार हैं, महिमावन्त गुणोंसे भरपूर हैं।
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