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समाधानः- .. आश्चर्यकारी लगता हो। सब रंगबेरंगी, मानो आकाशमें कुछ होता हो, सबकी दृष्टि ऐसी होती है, इसलिये ऐला लगता हो, परन्तु ऐसा सब होता है।
मुमुक्षुः- दृष्टिके साथ कोई मेल भी हो, ऐसा कुदरतका..
समाधानः- जब भगवान जन्म कल्याणक हुआ तब तो ऐसा बहुत लगता था। भगवान साक्षात विदेहक्षेत्रमें विराजते हैं, उनकी यहाँ प्रतिष्ठा होती थी, मानो कुछ अलग ही लगता था।
मुमुक्षुः- ...
समाधानः- ये सब घुमते थे, सब घुमते थे। सबको आश्चर्य लगता था। आप सब घुमते थे। ... वह करवाते थे। कुछ मालूम नहीं पडता था। वे उदक चन्दन बोलते थे उसका भी आश्चर्य लगता था। उदक चन्दनका कुछ मालूम नहीं पडता था। ऐसा सब। वह समझ गये कि ये कुछ समझते नहीं है। इसलिये अपने आप पूजा करते थे। एक आणन्दभाईको खडा रखे। वह देरावासी थे न। उन्हें बहुत भक्तिभाव (था)। पूजा करते रहते थे।
उन्होंने क्या मांडलेकी पूजा की! मांडला बनाया था, उन्होंने क्या पूजा की, कुछ समझमें नहीं आता था। आणन्दभाईको खडे रखकर पूजा करवाते थे। पूजा सुनते रहते थे, देखते रहते थे, लेकिन कुछ मालूम नहीं पडता था। (उन्होंने कहा), दानेको कलर करके लाना। हम उत्साहसे रंग करके लाये, परन्तु वह क्यों करते थे, यह कुछ मालूम नहीं पडता था। ज्वारा उगाया, तो देखते रहते थे कि यह क्या करते हैं? मालूम नहीं पडता था कि कल्याणक कैसे होते होंगे?
मुमुक्षुः- ज्वारा कितने लंबे हुए थे।
समाधानः- वह एक शगुन माना जाता है। उस परसे सब ऐसा कहते हैं कि उसका भविष्य कैसा होगा। भगवान पधारे तो यहाँ प्रत्येक गाँवमें भगवान पधारे। भगवानने साक्षात दीक्षा ली। जन्म कल्याणकके समय मेरु किया था, नदीके उस पार। नदीमेंसे पानी लाते थे। एकके बाद एक लाते थे। मानो भगवानके पास एकके बाद एक घडा लाते हैं और अभिषेक करते हैं। सोमाभाई बोलते थे।
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प्रतिष्ठाचार्य, वे अपने आप (करते रहते थे)। रात्रिको कुछ ओर होता था, सबेरे कुछ दूसरा होता था। वे दोनों अपने आप करते रहते थे। किसीको कुछ नहीं कहते थे। उसके साथ दूसरे दो लोग थे, दोनों करते रहते थे। भगवानका जन्म हुआ उस वक्त दिपक करे, घण्ट बजे, रत्नवर्षा होती थी। ऐसे देखते रहते थे कि यह क्या? मानो भगवानका साक्षात जन्म हुआ। दरवाजे पर मुहूर्त लगाया था, वह बजता था, सब आश्चर्य लगता था। उस दिनसे आश्चर्य ऐसे ही चला तो उसमेंसे भगवानकी भक्ति शुरू हो गयी। ऐसा हुआ था।
मुमुक्षुः- सौराष्ट्रमें सर्व प्रथम बार भगवान पधारे।
समाधानः- पहले भगवान पधारे।
मुमुक्षुः- उसमें भी श्वेतांबर लोग तो कैसे..
समाधानः- मानते थे, परन्तु आदत नहीं थी।
मुमुक्षुः- पंच कल्याणक महोत्सव पूरे सौराष्ट्रमें कितने साल बाद हुआ। पहली बार। पंच कल्याणक महोत्सव बहुत सालके बाद हुआ।
समाधानः- गुरुदेवको उतना आश्चर्य लगता था। गुरुदेवने सीमंधर भगवानकी पेटी खोली तो उनको भी उतना आश्चर्य लगा। मानो साक्षात भगवान देखे। साक्षात दर्शन करे। गुरुदेवको उतना आश्चर्य लगा था। चंदुभाईके कमरेमें भगवानको रखे तो बार- बार वहाँ जाकर बैठते थे और स्वयं गाते रहते थे। "सीमंधरजिन दीठा लोयण हार..' ऐसा गाते थे। "निरखत तृप्ति न होय, सीमंधरजिन.. अमीय भरी मूर्ति रची रे, उपमा न घटे कोय, शांत सुधारस झिलती रे, निरखत तृप्ति न होय, सीमंधरजिन दीठा लोयण आज...' ऐसे गाते थे। उनको उतना आश्चर्य लगता था। व्याख्यानमें "विरहा पडयशा सीमंधर भगवानना...', ऐसा कुछ गाते थे। "चंद्रानन जिन सांभळीए अरदास...' वह सब गाते थे। उस दिनसे ऐसे ही चला आ रहा है।
मुमुक्षुः- ... प्रतिष्ठाके समय "रे रे सीमंधरजिनना विरहा पडया...' आता है न? "रे रे सीमंधर जिनना विरहा पडया आ भरतमां...' ऐसे भावपूर्वक...
मुमुक्षुः- ... गुरुदेवको उतनी भक्ति उछलती। आपको उछले वह तो स्वाभाविक है, आपका तो हृदय भक्तिमय दिखता है। गुरुदेवको भी उस समय उतनी भक्ति उछलती थी। षाष्टांग प्रणाम किये।
समाधानः- षाष्टांग प्रणाम। भगवान मन्दिरमें पधारे तो षाष्टांग प्रणाम किये। कितनी देर तक वैसे ही षाष्टांग, उठे नहीं। आँखमेंसे आंसु चले जाय।
मुमुक्षुः- षाष्टांग यानी षाष्टांग। हाथ ऐसे नहीं।
समाधानः- हाथ ऐसे लंबे। इस प्रकार। हाथ जमीन पर, पैर जमीन पर। बस,
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कितनी देर!
मुमुक्षुः- एक यहाँ और एक वहाँ गिरनार पर।
समाधानः- सहस्त्रावनमेें, सहस्रावनमें।
मुमुक्षुः- वहाँ षाष्टांग किये थे। वही षाष्टांग हुए उनके सामने। दूसरे वनेचंद सेठ थे, वह गुरुदेवको षाष्टांग करे। ऐसे काटकोण हो गया। गुरुदेव भगवानकी ओर, यह गुरुदेवकी ओर। वनेचंद सेठ गुरुदेव प्रति षाष्टांग (करते थे)।
समाधानः- तत्त्वका बोले तो तत्त्वका। लेकिन पद्मनंदि पर जब उनके व्याख्यान चलते थे, तब पद्मनंदिको जो व्याख्यान चलते थे उसमें उनकी जो भक्ति उछलती थी। और वे जो बोलते थे, उनका हृदय भक्तिसे भरा है, ऐसा दिखाई देता था। पद्मनंदि पर्युषणमें पढते थे, तब हे प्रभु! हे जिनेश! हे जिनेन्द्र! करके बोलते थे। मेरे नेत्र तृप्त नहीं होते हैैं, ऐसा करके बोलते थे। एकदम भक्तिभावसे उनका व्याख्यान चलता था। सबने सुना तो होगा न।
मुमुक्षुः- प्रतिष्ठा पर भी गुरुदेव भक्तिसे प्रवचन देते थे। बादलके टूकडे हो गये...
समाधानः- हाँ, बादलके टूकडे हो गये। नदी कलकल करके रोती है। दृष्टि और ज्ञानके विषयका उतना और भक्तिका विषय उतना। वैराग्यका आये तो वैराग्य पर चले। लडका दीक्षा ले तो .. वह बोले। कितने पंच कल्याणक देखने मिले। गुरुदेवके प्रतापसे। कितनी वेदी प्रतिष्ठाएँ और कितने पंच कल्याणक हो गये। कितने मन्दिर बन गये। हर गाँवमें मन्दिर हो, इसलिये मुमुक्षु मण्डल, वांचन सब चालू हो गया। मन्दिर हो इसलिये वांचन, भक्ति, पूजन सब शुरू हो जाता है। स्थानकवासीमें कहाँ कुछ (होता है)। उपाश्रय होता है उसमें जाकर पढना होता है।
प्रतिष्ठाचार्य उस दिन तेरापंथी है ऐसा नहीं था। जो प्रतिष्ठाचार्य मिले उसे ले आये थे। हम जयपुर गये थे तो वह कहे, मैं प्रतिष्ठा करता हूँ। कहा, आना। हम किसीको पहचानते नहीं थे। प्रतिष्ठाचार्य जो रामचंद्रजी था, उसे हम ले आये थे। उसे हम ही लाये थे। वह अपने आप ही सब करता रहता था। उसमें थोडा बीसपंथी जैसा भी अन्दर करते होंगे। कुछ मालूम नहीं था, भगवानका ओर्डर दे उसके बाद तैयार होता था। मन्दिर हुआ, गुरुदेवने कहा, अब प्रतिष्ठा करनी है, थोडे महिनेमें, दोे-तीन महिनेमें। भगवान लेने कौन जाये? गुरुदेवने हमें कहा, भगवान लेने आप जाइये। जयपुरमें भगवान मिलते हैं, वहाँसे ले आना। फिर हमारे साथ कौन था? जडावबहन था। वह जयपुर जाते थे। जडावबहन और इन्दुभाई। उनके पहचानवाले थे। गुरुदेवने कहा, प्रतिमाजी जयपुरमें होती है, वहाँसे ले आना। उनके साथ हम गये। वहाँ गये तो हमें एक पण्डित चैनसुखलाल मिल गये। उनके वांचनमें हम जाते थे। रातको वांचन करते थे, वहाँ बैठते थे। सोनगढसे
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आये हैं, प्रतिमाजी लेने आये हैं। भगवानके प्रति उत्साहसे भक्ति आनी भी मुश्किल थी। कितने समय तो टीका की।
.. बहुत भाव आये। शास्त्रमें आये कि अष्ट द्रव्य पूजा कराये। जल, चन्दन, अक्षत, पुष्प, फल, फूल सब आता है। पहले शुरूआतसे ऐसे ही चला आ रहा है।
मुमुक्षुः- प्रतिमाजी कुदरती बहुत सुन्दर आये हैं।
समाधानः- बस, वह तैयारी ही थी दुकानमें। दुकानमें बहुत तैयार रखते हैं। छोटे-बडे। यह तैयार था तो बडे भगवान, सीमंधर भगवान अच्छे हैं। शांतिनाथ और पद्मप्रभु बाजुमें है। वैसे वहाँ लंछन करवाकर ले लिये। फिर उसे ले जानेका ओर्डर नहीं मिलता था, तो उसके ओर्डरके लिये रुके। फिर आते समय उसे रोकते थे कि चालू गाडीमें नहीं आये। फिर हम वहाँ रुक जाते थे। उन दिनोंमें रेलका बहुत अच्छा था तो भगवान साथ-साथ आये।
मुमुक्षुः- गुरुदेवको स्वप्नमें...
समाधानः- गुरुदेवको उमंग था न। रेलगाडी चली आती थी। गुरुदेवने कहा, मुझे तीन दिपक दिखते हैं। तीन भगवान आ रहे हैं ऐसा लगता है। एक जगह कहे, भगवानके बक्से थे.. कहाँ? महेसाणा। महेसाणामें ट्रेन बदलनी पडी। भगवानके बक्से आये, यहाँसे नहीं चढेंगे। गाडी बदलनी पडेगी, इसमें नहीं चढेंगे। हम चले जायें और भगवान यहाँ रहे। फिर विचार किया, कुछ नहीं, बक्से यहाँ रहेंगे तो हम भी रुक जायेंगे। लेकिन थोडी देर बाद कहा, भगवान चढ जायेंगे। रोका था सही। वहाँ भगवानको उतारे, हमने देखा। फिर उसके पीछे-पीछे कहा, सँभलकर ले जाना। ऐसे उसके पीछे- पीछे घुमते थे। पहली बार था इसलिये।
भगवानको आने दिया। उसमें एक ... जोड दिया होगा। परन्तु उस प्रकारसे भगवानको आने दिया। बेचरभाई बैलगाडीमें बैठे। भगवानको देखकर उनको इतना उत्साह आ गया। बैलगाडीमें स्वयं बैठे और भगवानको ले आये। भावनगर राजाका हाथी आया था। दिखाव बहुत (अच्छा लगता था)। हाथी समझदार था। हाथी सब समझता था। समझता था अर्थात किसीको बिठाना पडे, उसे मारे ऐसा नहीं करना पडता था। फिर बेचरभाई बैठे और स्वागत किया। वहाँ गुरुदेवके सामने भगवानको खोले। गुरुदेव थँभ गये। .. प्रसन्नता बहुत थी। वहीं लेख लिखवाया और लंछन करवाया, सब। लेखमें क्या लिखते हैं, वह पण्डितजीको पूछकर करवाया। तैयार ही थी। इससे कुछ बडे भी थे। ऐसा सब था। इससे कोई छोटे भी थे। लेकिन हमें यह पसन्द आ गये। इनकी मुद्रा बहुत अच्छी थी इसलिये। इनकी मुद्रा बहुत अच्छी थी। थोडा हँसते हैं, ऐसा लगता था उसे हमने ठीक करवाया। इसलिये गंभीर हो गयी। हमने नाठाको कहा, थोडा ठीक
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करवाईये। फिर ठीक करवाया और कहा, हमें यही मुद्रा पसन्द आती है।
.. हर वक्त पण्डितको पूछते थे। .. थोडा गंभीर लगे ऐसा करवाया। परन्तु भगवान प्रसन्न हो ऐसा दिखाव लगता है।