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[सामायिकं ] सामायिक [स्थायि ] स्थायी है [इति केवलिशासने ] ऐसा केवलीके
शासनमें कहा है
भेदकल्पना विमुक्त परम समरसीभाव सहित होनेसे त्रस
सनातन (स्थायी) है ऐसा वीतराग सर्वज्ञके मार्गमें सिद्ध है
योगीश्वरस्य सामायिकाभिधानव्रतं सनातनमिति वीतरागसर्वज्ञमार्गे सिद्धमिति
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अवस्थाको प्राप्त तथा निर्मल है, उसे मैं कर्मसे मुक्त होनेके हेतु नमन करता हूँ, स्तवन करता
हूँ, सम्यक् प्रकारसे भाता हूँ
मार्गमें) हम वर्तते हैं
हूँ
परमजिनमुनीनां चित्तमुच्चैरजस्रम्
तदहमभिनमामि स्तौमि संभावयामि
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भवका परिचय बिलकुल नहीं है
अखंडानन्दात्मा निखिलनयराशेरविषयः
शुभाभावो भूयोऽशुभपरिणतिर्वा न च न च
य एवं संन्यस्तो भवगुणगणैः स्तौमि तमहम्
स्फु टितसहजतेजःपुंजदूरीकृतांहः-
जयति जगति नित्यं चिच्चमत्कारमात्रम्
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(अर्थात् जो सर्वथा
सामायिक [स्थायि ] स्थायी है [इति केवलिशासने ] ऐसा केवलीके शासनमें कहा है
महामुनिगणाधिनाथहृदयारविन्दस्थितम्
सदा निजमहिम्नि लीनमपि स
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नियममें, निजस्वरूपमें अविचल स्थितिरूप, चिन्मय
कारणभूत ऐसे परम तपश्चरणमें (
कारणपरमात्मा सदा निकट है ), उस परद्रव्यपराङ्मुख परमवीतराग
परिमितकालाचरणमात्रे नियमे परमब्रह्मचिन्मयनियतनिश्चयान्तर्गताचारे स्वरूपेऽविचलस्थितिरूपे
व्यवहारप्रपंचितपंचाचारे पंचमगतिहेतुभूते किंचनभावप्रपंचपरिहीणे सकलदुराचारनिवृत्तिकारणे
परमतपश्चरणे च परमगुरुप्रसादासादितनिरंजननिजकारणपरमात्मा सदा सन्निहित इति
केवलिनां शासने तस्य परद्रव्यपराङ्मुखस्य परमवीतरागसम्यग्
तिष्ठत्युच्चैः परमयमिनः शुद्ध
साक्षादेषा सहजसमता प्रास्तरागाभिरामे
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कि) रागके नाशके कारण
[तस्य ] उसे [सामायिकं ] सामायिक [स्थायि ] स्थायी है [इति केवलिशासने ] ऐसा
केवलीके शासनमें कहा है
प्रकृतिभूत (स्वभावभूत) समतापरिणाम होता है
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जहाँ निकट है, वहाँ वे रागद्वेष विकृति करनेमें समर्थ नहीं ही है
आत्मतत्त्वमें ‘यह करने योग्य है और यह छोड़ने योग्य है’ ऐसे विधिनिषेधके
विकल्परूप स्वभाव न होनेसे उस आत्मतत्त्वका दृढ़तासे आलम्बन लेनेवाले मुनिको
स्वभावपरिणमन होनेके कारण समरसरूप परिणाम होते हैं, विधिनिषेधके
विकल्परूप
ज्ञानज्योतिःप्रहतदुरितानीकघोरान्धकारे
तस्मिन्नित्ये समरसमये को विधिः को निषेधः
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उसे [सामायिकं ] सामायिक [स्थायि ] स्थायी है [इति केवलिशासने ] ऐसा
केवलीके शासनमें कहा है
वास्तवमें केवलदर्शनसिद्ध (
नित्यशः संत्यजति, तस्य खलु केवलदर्शनसिद्धं शाश्वतं सामायिकव्रतं भवतीति
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सामायिक [स्थायी ] स्थायी है [इति केवलिशासने ] ऐसा केवलीके शासनमें कहा है
चौर्य, अब्रह्म और परिग्रहके परिणामसे उत्पन्न होनेवाले अशुभकर्मको, वे दोनों कर्म
संसाररूपी स्त्रीके
परिग्रहपरिणामसंजातमशुभकर्म, यः सहजवैराग्यप्रासादशिखरशिखामणिः संसृतिपुरंध्रिका-
विलासविभ्रमजन्मभूमिस्थानं तत्कर्मद्वयमिति त्यजति, तस्य नित्यं केवलिमतसिद्धं
सामायिकव्रतं भवतीति
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जीवास्तिकायमें सदा विहरता है और फि र त्रिभुवनजनोंसे (तीन लोकके जीवोंसे) अत्यन्त
पूजित ऐसा जिन होता है
नित्यानंदं व्रजति सहजं शुद्धचैतन्यरूपम्
महामोहध्वान्तप्रबलतरतेजोमयमिदम्
यजाम्येतन्नित्यं भवपरिभवध्वंसनिपुणम्
तदेकं संत्यक्त्वा पुनरपि स सिद्धो न चलति
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मुक्तिसुख ही ऐसा अनन्य, अनुपम तथा परिपूर्ण है कि उसे प्राप्त करके उसमें आत्मा
सदाकाल तृप्त
[तस्य ] उसे [सामायिकं ] सामायिक [स्थायि ] स्थायी है [इति केवलिशासने ] ऐसा
केवलीके शासनमें कहा है
[स्थायि ] स्थायी है [इति केवलिशासने ] ऐसा केवलीके शासनमें कहा है
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समस्त विकारसमूहको परम समाधिके बलसे जो निश्चयरत्नत्रयात्मक परम तपोधन
छोड़ता है, उसे वास्तवमें केवलीभट्टारकके शासनसे सिद्ध हुआ परम सामायिक नामका
व्रत शाश्वतरूप है ऐसा इन दो सूत्रोंसे कहा है
परमतपोधनः संत्यजति, तस्य खलु केवलिभट्टारकशासनसिद्धपरमसामायिकाभिधानव्रतं
शाश्वतरूपमनेन सूत्रद्वयेन कथितं भवतीति
मुदा संसारस्त्रीजनितसुखदुःखावलिकरम्
समाधौ निष्ठानामनवरतमानन्दमनसाम्
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[सामायिकं ] सामायिक [स्थायि ] स्थायी है [इति केवलिशासने ] ऐसा केवलीके
शासनमें कहा है
कारणभूत ऐसे उन धर्म
आनन्दसागरमें मग्न होनेवाले (डूबनेवाले), सकल बाह्यक्रियासे पराङ्मुख, शाश्वतरूपसे
(सदा) अन्तःक्रियाके अधिकरणभूत, सदाशिवस्वरूप आत्माको निरन्तर ध्याता है, उसे
लक्षणमक्षयानन्दाम्भोधिमज्जंतं सकलबाह्यक्रियापराङ्मुखं शश्वदंतःक्रियाधिकरणं स्वात्मनिष्ठ-
निर्विकल्पपरमसमाधिसंपत्तिकारणाभ्यां ताभ्यां धर्मशुक्लध्यानाभ्यां सदाशिवात्मकमात्मानं
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समाधि जिसका लक्षण है ऐसा, शाश्वत सामायिकव्रत है
विशाल तत्त्वको अत्यन्त प्राप्त करता है कि जिसमेंसे (
दूर है
तात्पर्यवृत्ति नामक टीकामें (अर्थात् श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवप्रणीत श्री नियमसार
परमागमकी निर्ग्रंथ मुनिराज श्री पद्मप्रभमलधारिदेवविरचित तात्पर्यवृत्ति नामकी टीकामें)
सामायिकव्रतं भवतीति
धर्मध्यानेप्यनघपरमानन्दतत्त्वाश्रितेऽस्मिन्
भेदाभावात
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[करोति ] करता है, [तस्य तु ] उसे [निर्वृत्तिभक्तिः भवति ] निर्वृत्तिभक्ति (निर्वाणकी
भक्ति) है [इति ] ऐसा [जिनैः प्रज्ञप्तम् ] जिनोंने कहा है
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पापसमूहसे मुक्त चित्तवाला जीव
भक्तिं कुर्यादनिशमतुलां यो भवच्छेददक्षाम्
भक्तो भक्तो भवति सततं श्रावकः संयमी वा
त्याग, (७) ब्रह्मचर्य, (८) आरम्भत्याग, (९) परिग्रहत्याग, (१०) अनुमतित्याग और (११) उद्दिष्टाहार-
त्याग
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[परमभक्तिं ] परम भक्ति [करोति ] करता है, [व्यवहारनयेन ] उस जीवको
व्यवहारनयसे [परिकथितम् ] निर्वाणभक्ति कही है
जीव करता है, उस मुमुक्षुको व्यवहारनयसे निर्वाणभक्ति है
परमभक्ति मासन्नभव्यः करोति, तस्य मुमुक्षोर्व्यवहारनयेन निर्वृतिभक्ति र्भवतीति
करता, वही व्यवहारसे निर्वाणभक्ति वेद रे
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हैं, उन सिद्धोंको मैं नित्य वंदन करता हूँ
जो शुद्धात्माकी भावनासे उत्पन्न कैवल्यसम्पदाके (
ये निर्वाणवधूटिकास्तनभराश्लेषोत्थसौख्याकराः
तान् सिद्धानभिनौम्यहं प्रतिदिनं पापाटवीपावकान्
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सूर्य हैं, जो स्वाधीन सुखके सागर हैं, जिन्होंने अष्ट गुणोंको सिद्ध (
पापाटवीपावक (
रमणीय मुखकमलके महा
मुक्ति श्रीवनितामुखाम्बुजरवीन् स्वाधीनसौख्यार्णवान्
नित्यान् तान् शरणं व्रजामि सततं पापाटवीपावकान्
योग्याः सदा शिवमयाः प्रवराः प्रसिद्धाः
पंकेरुहोरुमकरंदमधुव्रताः स्युः
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[भक्तिम् ] भक्ति [करोति ] करता है, [तेन तु ] उससे [जीवः ] जीव [असहायगुणं ]
परमां भक्तिं, तेन कारणेन स भव्यो भक्ति गुणेन निरावरणसहजज्ञानगुणत्वादसहायगुणात्मकं
निजात्मानं प्राप्नोति
नित्ये निर्मुक्ति हेतौ निरुपमसहजज्ञान