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स्वर्गस्त्रीणां भूरिभोगैकभाक् स्यात
सत्यात्सत्यं चान्यदस्ति व्रतं किम्
बहुत-से भोग प्राप्त करता है ) और इस लोकमें सर्वदा सर्व सत्पुरुषोंका पूज्य बनता है
[ग्रहणभावं ] उसे ग्रहण करनेके भावको [मुंचति ] छोड़ता है, [तस्य एव ] उसीको
[तृतीयव्रतं ] तीसरा व्रत [भवति ] है
-छोड़े ग्रहणके भाव, होता तीसरा व्रत है उसे
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विस्मृतं वा परद्रव्यं
हो वह अरण्य है
सुखका कारण है
विवर्जितपरिणामः ] मैथुनसंज्ञारहित जो परिणाम वह [तुरीयव्रतम् ] चौथा व्रत है
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शुभपरिणामेन च ब्रह्मचर्यव्रतं भवति इति
स्मरसि मनसि कामिंस्त्वं तदा मद्वचः किम्
व्रजसि विपुलमोहं हेतुना केन चित्रम्
है कि सहज परमतत्त्वको
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परिग्रहपरित्याग एव परंपरया पंचमगतिहेतुभूतं पंचमव्रतमिति
[सर्वेषां ग्रन्थानां त्यागः ] सर्व परिग्रहोंका त्याग (सर्वपरिग्रहत्यागसम्बन्धी शुभभाव)
वह, [चारित्रभरं वहतः ]
होती है और वह शुद्धोपयोग मोक्षका हेतु होता है
कहा जाता है
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निरुपमसुखावासप्राप्त्यै करोतु निजात्मनि
न च भवति महच्चित्रं चित्रं सतामसतामिदम्
आश्चर्यकी बात है
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[गच्छति ] चलता है, [तस्य ] उसे [ईर्यासमितिः ] ईर्यासमिति [भवेत् ] होती है
तथा जङ्गम प्राणियोंकी परिरक्षा(समस्त प्रकारसे रक्षा)के हेतु दिनमें ही चलता है, उस
परमश्रमणको ईर्यासमिति होती है
(
कहलाता [इस ईर्यासमितिकी भाँति अन्य समितियोंका भी समझ लेना
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मुक्त्वा संगं भवभयकरं हेमरामात्मकं च
भेदाभावे समयति च यः सर्वदा मुक्त एव
त्रसहतिपरिदूरा स्थावरणां हतेर्वा
सकलसुकृतसीत्यानीकसन्तोषदायी
समितिविरहितानां कामरोगातुराणाम्
ह्यपवरकममुष्याश्चारुयोषित्सुमुक्ते :
अपूर्व, सहज
परितापरूपी क्लेशको शान्त करनेवाली तथा समस्त सुकृतरूपी धान्यकी राशिको (पोषण
देकर) सन्तोष देनेवाली मेघमाला है, ऐसी यह समिति जयवन्त है
(अर्थात् तू मुक्तिका चिंतवन कर)
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[परित्यज्य ] परित्यागकर [स्वपरहितं वदतः ] जो स्वपरहितरूप वचन बोलता है, उसे
[भाषासमितिः ] भाषासमिति होती है
वह पैशून्य है
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स्वहितनिहितचित्ताः शांतसर्वप्रचाराः
कथमिह न विमुक्ते र्भाजनं ते विमुक्ताः
वचन वह भाषासमिति है
विमुक्त पुरुष इस लोकमें विमुक्तिका भाजन क्यों नहीं होंगे ? (अर्थात् ऐसे मुनिजन
अवश्य मोक्षके पात्र हैं
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कहा है; अतिप्रशस्त अर्थात् मनोहर (अन्न); हरितकायमय सूक्ष्म प्राणियोंके संचारको
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शुद्धिनामधेयैर्नवविधपुण्यैः प्रतिपत्तिं कृत्वा श्रद्धाशक्त्यलुब्धताभक्ति ज्ञानदयाक्षमाऽभिधान-
सप्तगुणसमाहितेन शुद्धेन योग्याचारेणोपासकेन दत्तं भक्तं भुंजानः तिष्ठति यः परमतपोधनः
तस्यैषणासमितिर्भवति
और क्षमा
एषणासमिति होती है
ले जाकर, उच्च-आसन पर विराजमान करके, पाँव धोकर, पूजन करता है और प्रणाम करता है
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परिणमितसमाधिः सर्वसत्त्वानुकम्पी
दहति निहतनिद्रो निश्चिताध्यात्मसारः
उसे प्राप्त करनेके लिये (
परिणमित हुई है, जिसे सर्व जीवोंके प्रति अनुकम्पा है, जो विहित (
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ध्यात्वात्मानं पूर्णबोधप्रकाशम्
प्राप्नोतीद्धां मुक्ति वारांगनां सः
[आदाननिक्षेपणसमितिः ] आदाननिक्षेपणसमिति [भवति ] है [इति निर्दिष्टा ] ऐसा कहा है
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एव बाह्योपकरणनिर्मुक्ताः
परमजिनमुनीनां संहतौ क्षांतिमैत्री
भवसि हि परमश्रीकामिनीकांतकांतः
पुस्तक वह ज्ञानका उपकरण है; शौचका उपकरण कायविशुद्धिके हेतुभूत कमण्डल
है; संयमका उपकरण
कहा है
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प्रतिष्ठापन समिति [भवेत् ] होती है
कारण मलमूत्रादिक संभवित हैं ही
रहकर, कायकर्मोंका (
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मुहुर्मुहुः कलेवरस्याप्यशुचित्वं वा परिभावयति, तस्य खलु प्रतिष्ठापनसमितिरिति
जिनमतकुशलानां स्वात्मचिंतापराणाम्
सहितमुनिगणानां नैव सा गोचरा स्यात
भवभवभयध्वान्तप्रध्वंसपूर्णशशिप्रभाम्
जिनमततपःसिद्धं यायाः फलं किमपि ध्रुवम्
समान है तथा तेरी सत्
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सपदि याति मुनिः परमार्थतः
किमपि केवलसौख्यसुधामयम्
व्यवहारनयसे [मनोगुप्तिः ] मनोगुप्ति [परिकथिता ] कहा है
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चिंतासनाथमनसो विजितेन्द्रियस्य
श्रीमज्जिनेन्द्रचरणस्मरणान्वितस्य
है और जो श्रीजिनेन्द्रचरणके स्मरणसे संयुक्त है, उसे सदा गुप्ति होती है
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वचनोंका [परिहारः ] परिहार [वा ] अथवा [अलीकादिनिवृत्तिवचनं ] असत्यादिककी
निवृत्तिवाले वचन [वाग्गुप्तिः ] वह वचनगुप्ति है
युद्धादिकका कथन) वह राजकथाप्रपंच है; चोरोंका चोरप्रयोगकथन वह चोरकथाविधान है
(अर्थात् चोरों द्वारा किये जानेवाले चोरीके प्रयोगोंकी बात वह चोरकथा है ); अति वृद्धिको
प्राप्त भोजनकी प्रीति द्वारा मैदाकी पूरी और शक्कर, दही
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ध्यात्वा शुद्धं सहजविलसच्चिच्चमत्कारमेकम्
प्राप्नोत्युच्चैः प्रहतदुरितध्वांतसंघातरूपः
करता है