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ध्यायामीति शुद्धोपयोगलक्षणं ज्ञातव्यम्
करनेसे जिसको शुद्धोपयोग सिद्ध हुआ है ऐसा होता हुआ, उपयोगात्मा द्वारा (उपयोगरूप निज
स्वरूपसे) आत्मामें ही सदा निश्चलरूपसे उपयुक्त रहता हूँ
[कारयिता न ] करानेवाला नहीं हूँ; [कर्तृणां अनुमन्ता न एव ] (और) कर्ताका अनुमोदक
नहीं हूँ
कर्ता न, कारयिता न, अनुमंता हूँ कर्तानो नहीं. १६०
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मतस्वरूपं तन्नाहं भवामि
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[पुद्गल द्रव्यं ] वे पुद्गलद्रव्य [परमाणुद्रव्याणां पिण्डः ] परमाणुद्रव्योंका पिण्ड है
ने तेह पुद्गलद्रव्य बहु परमाणुओनो पिंड छे. १६१
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कथंचिदेकत्वेनावभासनात
स्वरूपास्तित्व अनेक होने पर भी कथंचित् (स्निग्धत्व
इसलिये [अहं न देहः ] मैं देह नहीं हूँ, [वा ] तथा [तस्य देहस्य कर्ता ] उस देहका कर्ता
नहीं हूँ
तेथी नथी हुँ देह वा ते देहनो कर्ता नथी. १६२
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द्रव्यैकपिण्डपर्यायपरिणामस्याकर्तृरनेकपरमाणुद्रव्यैकपिण्डपर्यायपरिणामात्मकशरीरकर्तृत्वस्य
सर्वथा विरोधात
नहीं हूँ, क्योंकि मैं अनेक परमाणुद्रव्योंके एकपिण्ड पर्यायरूप परिणामका अकर्ता ऐसा मैं
अनेक परमाणुद्रव्योंके एकपिण्डपर्यायरूप
वा ] वह स्निग्ध अथवा रूक्ष होता हुआ [द्विप्रदेशादित्वम् अनुभवति ] द्विप्रदेशादिपनेका अनुभव
करता है
ते स्निग्ध रूक्ष बनी प्रदेशद्वयादिवत्त्व अनुभवे. १६३
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रूक्षस्थानीयद्वेषभावेन यदा परिणमति तदा परमागमकथितप्रकारेण बन्धमनुभवति, तथा परमाणुरपि
स्वभावेन बन्धरहितोऽपि यदा बन्धकारणभूतस्निग्धरूक्षगुणेन परिणतो भवति तदा पुद्गलान्तरेण सह
विभावपर्यायरूपं बन्धमनुभवतीत्यर्थः
परमाणुद्रव्यात्मक शब्द पर्यायकी व्यक्तिका (प्रगटताका) असंभव होनेसे अशब्द है
स्निग्ध अथवा रूक्ष होता है, इसीलिये उसे
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व्यापि स्निग्धत्वं वा रूक्षत्वं वा भवति
विशुद्धिसंक्लेशपर्यन्तं वर्धते, तथा पुद्गलपरमाणुद्रव्येऽपि स्निग्धत्वं रूक्षत्वं च बन्धकारणभूतं
पूर्वोक्तजलादितारतम्यशक्तिदृष्टान्तेनैकगुणसंज्ञां जघन्यशक्तिमादिं कृत्वा गुणसंज्ञेनाविभागपरिच्छेद-
तक (स्निग्धत्वं वा रूक्षत्वं) स्निग्धत्व अथवा रूक्षत्व होता है ऐसा [भणितम् ] (जिनेन्द्रदेवने)
कहा है
स्निग्धत्व वा रूक्षत्व ए परिणामथी परमाणुने. १६४
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प्रकारके गुणोंवाला है
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च सति जलवालुकयोरिव जीवस्य बन्धो न भवति, तथा पुद्गलपरमाणोरपि जघन्यस्निग्ध-
रूक्षशक्तिप्रस्तावे बन्धो न भवतीत्यभिप्रायः
परिहीनाः ] जघन्यांशवाले नहीं बंधते
वह परिणामक (परिणमन करानेवाला) होनेसे बंधका कारण है
है; अथवा दश अंश स्निग्धतावाला परमाणु बारह अंश स्निग्धतावाले परमाणुके साथ बंधकर स्कंध बनने
पर, दश अंश स्निग्धतावाला परमाणु बारह अंश स्निग्धतारूप परिणमित हो जाता है; इसलिये कम
अंशवाला परमाणु परिणम्य है और दो अधिक अंशवाला परमाणु परिणामक है
परिणम्य भी नहीं है
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ज्ञातव्यम्
बंधका अनुभव करता है
अथवा दो रूक्ष परमाणुओंके अथवा दो स्निग्ध
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स्निग्धका (दो अधिक अंशवाले) रूक्ष परमाणुके साथ बंध होता है
स्निग्धतावाला परमाणु ९३ अंश रूक्षतावाले परमाणुके साथ बंधता है; ५३३ अंश रूक्षतावाला
परमाणु ५३५ अंश रूक्षतावाले परमाणुके साथ बंधता है; ७००६ अंश रूक्षतावाला परमाणु
७००८ अंश स्निग्धतावाले परमाणुके साथ बंधता है
बंधता
साथ नहीं बंधता
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प्रथमस्थले गाथाचतुष्टयं गतम्
[ससंस्थानाः ] संस्थानों (आकारों) सहित होते हैं वे
विशिष्ट आकार धारण करनेकी शक्तिके वश होकर विचित्र संस्थान ग्रहण किये हैं वे
ते पृथ्वी
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पुद्गलस्कंधोंके द्वारा [अवगाढगाढनिचितः ] (विशिष्ट प्रकारसे) अवगाहित होकर गाढ़
(
आ लोक बादर
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पुद्गलकायैर्गाढं निचितो लोकः, ततोऽवधार्यते न पुद्गलपिण्डानामानेता पुरुषोऽस्ति
भृतस्तिष्ठति तथा पुद्गलैरपि
परिणत होनेकी शक्तिसे रहित
हि ते जीवेन परिणमिताः ] जीव उनको नहीं परिणमाता
कर्मत्वने पामे; नहि जीव परिणमावे तेमने. १६९
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ततोऽवधार्यते न पुद्गलपिण्डानां कर्मत्वकर्ता पुरुषोऽस्ति
जीव उन्हें कर्मरूप परिणमित नहीं करता
शरीरो बने छे जीवने, संक्रांति पामी देहनी. १७०
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स्वयमेव च शरीराणि जायन्ते
नोकर्मपुद्गला औदारिकादिशरीराकारेण स्वयमेव परिणमन्ति
[पुनः अपि ] पुनः
(भवांतर) रूप परिवर्तनका आश्रय लेकर वे
स्वयमेव शरीररूप परिणमित होते हैं
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शरीर
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विभागसाधनमरसत्वमरूपत्वमगन्धत्वमव्यक्त त्वमशब्दत्वमलिंगग्राह्यत्वमसंस्थानत्वं चास्ति
गाथात्रयम्
[अलिंगग्रहणम् ] अलिंगग्रहण (लिंग द्वारा ग्रहण न होने योग्य) और [अनिर्दिष्टसंस्थानम् ]
जिसका कोई संस्थान नहीं कहा गया है ऐसा [जानीहि ] जानो
स्पर्शगुणरूप व्यक्तताके अभावरूप स्वभाववाला होनेसे, (५) शब्दपर्यायके अभावरूप
स्वभाववाला होनेसे, तथा (६) इन सबके कारण (अर्थात् रस
स्वभाववाला होनेसे, आत्माको पुद्गलद्रव्यसे विभागका साधनभूत (१) अरसपना, (२)
अरूपपना, (३) अगंधपना, (४) अव्यक्तपना, (५) अशब्दपना, (६) अलिंगग्राह्यपना और
(७) असंस्थानपना है
हुआ, आत्माका शेष अन्य द्रव्योंसे विभाग (भेद) सिद्ध करता है
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इसप्रकार ‘आत्मा अतीन्द्रियज्ञानमय’ है इस अर्थकी प्राप्ति होती है
‘आत्मा इन्द्रियप्रत्यक्षका विषय नहीं है’ इस अर्थकी प्राप्ति होती है
चिह्न) द्वारा जिसका ग्रहण नहीं होता वह अलिंगग्रहण है
अनुमानसे ही ज्ञात होने योग्य) नहीं है’ ऐसे अर्थकी प्राप्ति होती है
करनेवाला हो) नहीं है’ ऐसे अर्थकी प्राप्ति होती है
अर्थकी प्राप्ति होती है
पदार्थोंका आलम्बनवाला ज्ञान नहीं है’ ऐसे अर्थकी प्राप्ति होती है
अलिंगग्रहण है; इसप्रकार ‘आत्मा जो कहींसे नहीं लाया जाता ऐसे ज्ञानवाला है’ ऐसे अर्थकी
प्राप्ति होती है
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ज्ञानका हरण नहीं किया जा सकता’ ऐसे अर्थकी प्राप्ति होती है
अलिंगग्रहण है; इसप्रकार ‘आत्मा शुद्धोपयोगस्वभावी है’ ऐसे अर्थकी प्राप्ति होती है
नहीं है, वह अलिंगग्रहण है; इसप्रकार ‘आत्मा द्रव्यकर्मसे असंयुक्त (असंबद्ध) है’ ऐसे
अर्थकी प्राप्ति होती है
ऐसे अर्थकी प्राप्ति होती है
और आर्तवको अनुविधायी (-अनुसार होनेवाला) नहीं है’ ऐसे अर्थकी प्राप्ति होती है
अलिंगग्रहण है; इसप्रकार ‘आत्मा लौकिकसाधनमात्र नहीं है’ ऐसे अर्थकी प्राप्ति होती है
है सो अलिंगग्रहण है; इसप्रकार ‘आत्मा पाखण्डियोंके प्रसिद्ध साधनरूप आकारवाला