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तेने परोक्ष पदार्थ जाणवुं शक्य ना
अस्तित्वकाल उपस्थित नहीं हुआ है क्योंकि (-अतीत -अनागत पदार्थ और इन्द्रियके) यथोक्त
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पुद्गलपरमाण्वादिषु च न प्रवर्तते
जालरूपे मानसज्ञाने च ये रतिं कुर्वन्ति ते सर्वज्ञपदं न लभन्ते इति सूत्राभिप्रायः
पर्याय नष्ट -अजातने, भाख्युं अतींद्रिय ज्ञान ते
है
[पर्यायं ] पर्यायको [जानाति ] जानता है, [तत् ज्ञानं ] वह ज्ञान [अतीन्द्रियं ] अतीन्द्रिय
[भणितम् ] कहा गया है
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त्वान्नाप्रदेशम्; मूर्तमेवावगच्छति तथाविधविषयनिबन्धनसद्भावान्नामूर्तम्; वर्तमानमेव परिच्छि-
नत्ति विषयविषयिसन्निपातसद्भावान्न तु वृत्तं वर्त्स्यच्च
सप्रदेशं मूर्तममूर्तमजातमतिवाहितं च पर्यायजातं ज्ञेयतानतिक्रमात्परिच्छेद्यमेव भवतीति
सर्वज्ञपदं लभन्ते इत्यभिप्रायः
ही जानता है क्योंकि वह स्थूलको जाननेवाला है, अप्रदेशको नहीं जानता, (क्योंकि वह
सूक्ष्मको जाननेवाला नहीं है ); वह मूर्तको ही जानता है क्योंकि वैसे (मूर्तिक) विषयके
साथ उसका सम्बन्ध है, वह अमूर्तको नहीं जानता (क्योंकि अमूर्तिक विषयके साथ
इन्द्रियज्ञानका सम्बन्ध नहीं है ); वह वर्तमानको ही जानता है, क्योंकि विषय -विषयीके
सन्निपात सद्भाव है, वह प्रवर्तित हो चुकनेवालेको और भविष्यमें प्रवृत्त होनेवालेको नहीं
जानता (क्योंकि इन्द्रिय और पदार्थके सन्निकर्षका अभाव है )
ही है
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संभावनाकरणमानसः सुदुःसहं कर्मभारमेवोपभुंजानः स जिनेन्द्रैरुद्गीतः
नैयायिकमतानुसारिशिष्यसंबोधनार्थं च गाथाद्वयमिति समुदायेन पञ्चमस्थले गाथापञ्चकं गतम्
नास्तीत्यावेदयति ---
नहीं
नहीं है; क्योंकि प्रत्येक पदार्थरूपसे परिणतिके द्वारा मृगतृष्णामें जलसमूहकी कल्पना करनेकी
भावनावाला वह (आत्मा) अत्यन्त दुःसह कर्मभारको ही भोगता है ऐसा जिनेन्द्रोंने कहा है
ते कर्मने ज अनुभवे छे एम जिनदेवो कहे
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पदार्थोंमें रुकना
ऐसा अब विवेचन करते हैं :
[भणिताः] कहे हैं
ते कर्म होतां मोही -रागी -द्वेषी बंध अनुभवे
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शुभाशुभफलं दत्वा गच्छन्ति, न च रागादिपरिणामरहिताः सन्तो बन्धं कुर्वन्ति
केवलज्ञानाद्यनन्तगुणव्यक्तिलक्षणमोक्षाद्विलक्षणं प्रकृतिस्थित्यनुभागप्रदेशभेदभिन्नं बन्धमनुभवति
य स्थानमूर्ध्वस्थितिर्निषद्या चासनं श्रीविहारो धर्मोपदेशश्च
द्वेषमें परिणत होनेसे ज्ञेय पदार्थोंमें परिणमन जिसका लक्षण है ऐसी (ज्ञेयार्थपरिणमनस्वरूप)
क्रियाके साथ युक्त होता है; और इसीलिये क्रियाके फलभूत बन्धका अनुभव करता है
क्रियाफल होता है, ज्ञानसे नहीं
वर्ते सहज ते कालमां, मायाचरण ज्यम नारीने
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योग्यतासद्भावात
दृश्यन्ते
मायाचारः इव ] स्त्रियोंके मायाचारकी भाँति, [नियतयः ] स्वाभाविक ही
प्रयत्नके बिना ही (
होना), बादलके दृष्टान्तसे अविरुद्ध है
खड़े रहना इत्यादि अबुद्धिपूर्वक ही (इच्छाके बिना ही) देखा जाता है
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अरहंता पञ्चमहाकल्याणपूजाजनकं त्रैलोक्यविजयकरं यत्तीर्थकरनाम पुण्यकर्म तत्फलभूता अर्हन्तो
होगी ? इसप्रकार इच्छाके बिना ही
मोहादिसे रहित है [तस्मात् ] इसलिये [सा ] वह [क्षायिकी ] क्षायिकी [इति मता ] मानी गई
है
मोहादिथी विरहित तेथी ते क्रिया क्षायिक गणी
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भावाच्चैतन्यविकारकारणतामनासादयन्ती नित्यमौदयिकी कार्यभूतस्य बन्धस्याकारणभूततया
कार्यभूतस्य मोक्षस्य कारणभूततया च क्षायिक्येव कथं हि नाम नानुमन्येत
सर्वथा क्षयसे उत्पन्न होती है इसलिये मोहरागद्वेषरूपी
कारणभूततासे क्षायिकी ही क्यों न माननी चाहिये ? (अवश्य माननी चाहिये) और जब
क्षायिकी ही माने तब कर्मविपाक (-कर्मोदय) भी उनके (अरहन्तोंके) स्वभावविघातका
कारण नहीं होता (ऐसै निश्चित होता है )
औदयिकी हैं
मोहनीयकर्मका क्षय हो चुका है
कर्मोंके उदयसे वे क्रियाएँ होती हैं वे कर्म अपना रस देकर खिर जाते हैं
वह औदयिकी क्रिया क्षायिकी कहलाती है
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स्वभावेनाशुद्धनिश्चयरूपेणापि यदि न परिणमति तदा
अशुभ [न भवति ] नहीं होता (शुभाशुभ भावमें परिणमित ही नहीं होता) [सर्वेषां जीवकायानां ]
तो समस्त जीवनिकायोंके [संसारः अपि ] संसार भी [न विद्यते ] विद्यमान नहीं है ऐसा सिद्ध
होगा
सर्वथा निर्विघात शुद्धस्वभावसे ही अवस्थित है; और इसप्रकार समस्त जीवसमूह, समस्त
बन्धकारणोंसे रहित सिद्ध होनेसे संसार अभावरूप स्वभावके कारण नित्यमुक्तताको प्राप्त हो
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आत्मा परिणामधर्मवाला होनेसे, जैसे स्फ टिकमणि, जपाकुसुम और तमालपुष्पके रंग -रूप
स्वभावयुक्ततासे प्रकाशित होता है उसीप्रकार, उसे (आत्माके) शुभाशुभ -स्वभावयुक्तता
प्रकाशित होती है
स्वभावरूप परिणमित होता हुआ दिखाई देता है)
संसारका अभाव हो जाये और सभी जीव सदा मुक्त ही सिद्ध होजावें ! किन्तु यह तो प्रत्यक्ष
विरुद्ध है
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धापितासमानजातीयत्वोद्दामितवैषम्यं क्षायिकं ज्ञानं किल जानीयात
कमतात्कालिकं वाप्यर्थजातं तुल्यकालमेव प्रकाशेत; सर्वतो विशुद्धस्य प्रतिनियत-
देशविशुद्धेरन्तःप्लवनात
विलयनाद्विचित्रमपि प्रकाशेत; असमानजातीयज्ञानावरणक्षयात्समानजातीयज्ञानावरणीय-
गाथापञ्चकपर्यन्तं व्याख्यानं करोति
समस्त पदार्थोंको [जानाति ] जानता है [तत् ज्ञानं ] उस ज्ञानको [क्षायिकं भणितम् ] क्षायिक
कहा है
हुआ है
होनेसे वह तात्कालिक या अतात्कालिक पदार्थ -मात्रको समकालमें ही प्रकाशित करता है;
(क्षायिक ज्ञान) सर्वतः विशुद्ध होनेके कारण प्रतिनियत प्रदेशोंकी विशुद्धि (सर्वतः विशुद्धि)
के भीतर डूब जानेसे वह सर्वतः (सर्व आत्मप्रदेशोंसे) भी प्रकाशित करता है; सर्व आवरणोंका
क्षय होनेसे, देश -आवरणका क्षयोपशम न रहनेसे वह सबको भी प्रकाशित करता है, सर्वप्रकार
ज्ञानावरणके क्षयके कारण (-सर्व प्रकारके पदार्थोंको जाननेवाले ज्ञानके आवरणमें निमित्तभूत
कर्मके क्षय होनेसे) असर्वप्रकारके ज्ञानावरणका क्षयोपशम (-अमुक ही प्रकारके पदार्थोंको
जाननेवाले ज्ञानके आवरणमें निमित्तभूत कर्मोंका क्षयोपशम) विलयको प्राप्त होनेसे वह विचित्र
को भी (-अनेक प्रकारके पदार्थों को भी) प्रकाशित करता है; असमानजातीय -ज्ञानावरणके
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क्षयके कारण) समानजातीय ज्ञानावरणका क्षयोपशम (-समान जातिके ही पदार्थोंको
जाननेवाले ज्ञानके आवरणमें निमित्तभूत कर्मोंका क्षयोपशम) नष्ट हो जानेसे वह विषम को भी
(-असमानजातिके पदार्थोंको भी) प्रकाशित करता है
होनेसे क्षायिक ज्ञान अवश्यमेव सर्वदा सर्वत्र सर्वथा सर्वको जानता है
ही समयमें सर्व आत्मप्रदेशोंसे समस्त द्रव्य -क्षेत्र -काल -भावको जानता है
तेने सपर्यय एक पण नहि द्रव्य जाणवुं शक्य छे
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ज्ञाता समस्तज्ञेयहेतुकसमस्तज्ञेयाकारपर्यायपरिणतसकलैकज्ञानाकारं चेतनत्वात
भी [ज्ञातुं न शक्यं ] जानना शक्य नहीं है
प्रत्येकके अतीत, अनागत और वर्तमान ऐसे (तीन) प्रकारोंसे भेदवाली
दाह्याकारपर्यायरूप परिणमित सकल एक
(-आत्मा) समस्तज्ञेयहेतुक समस्त ज्ञेयाकारपर्यायरूप परिणमित
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समस्तज्ञेयहेतुकसमस्तज्ञेयाकारपर्यायपरिणतसकलैकज्ञानाकारमात्मानं चेतनत्वात
ततोऽनन्तगुणानि जीवद्रव्याणि, तेभ्योऽप्यनन्तगुणानि पुद्गलद्रव्याणि
परिणततृणपर्णाद्याकारमात्मानं (स्वकीयस्वभावं) परिणमति, तथायमात्मा समस्तं ज्ञेयं जानन् सन्
समस्तज्ञेयहेतुकसमस्तज्ञेयाकारपर्यायपरिणतसकलैकाखण्डज्ञानरूपं स्वकीयमात्मानं परिणमति जानाति
परिच्छिनत्ति
स्वकीयमात्मानं न परिणमति न जानाति न परिच्छिनत्ति
बिम्बान्यपश्यन् दर्पणमिव, स्वकीयदृष्टिप्रकाश्यान् पदार्थानपश्यन् हस्तपादाद्यवयवपरिणतं स्वकीय-
देहाकारमात्मानं
परिणमित नहीं होता उसीप्रकार समस्तज्ञेयहेतुक समस्तज्ञेयाकारपर्यायरूप परिणमित सकल एक
ज्ञान जिसका आकार है ऐसे अपने रूपमें
दाह्याकारपर्यायरूप परिणमित न होनेसे अपूर्णरूपसे परिणमित होता है
रीतिसे परिणमित नहीं होती; उसी प्रकार यह आत्मा समस्त द्रव्य -पर्यायरूप समस्त ज्ञेयको नहीं
जानता, उसका ज्ञान (समस्त ज्ञेय जिसका निमित्त है ऐसे) समस्तज्ञेयाकारपर्यायरूप परिणमित
न होनेसे अपूर्णरूपसे परिणमित होता है
अर्थात् निजको ही पूर्ण रीतिसे अनुभव नहीं करता
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युगपद न जाणे जीव, तो ते केम जाणे सर्वने ? ४९
ही साथ [न विजानाति ] नहीं जानता [सः ] तो वह पुरुष [सर्वाणि ] सब को (-अनन्त
द्रव्यसमूहको) [कथं जानाति ] कैसे जान सकेगा ? (अर्थात् जो आत्मद्रव्यको नहीं जानता हो
वह समस्त द्रव्यसमूहको नहीं जान सकता)
[युगपद् ] एक ही साथ [सर्वाणि अनन्तानि द्रव्यजातानि ] सर्व अनन्त द्रव्य -समूहको [कथं
जानाति ] कैसे जान सकेगा ?
(-भेदोंके) निमित्त सर्व द्रव्यपर्याय हैं
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विशेषनिबन्धनभूतसर्वद्रव्यपर्यायान् प्रत्यक्षीकुर्यात
मानयोः स्वस्यामवस्थायामन्योन्यसंवलनेनात्यन्तमशक्यविवेचनत्वात्सर्वमात्मनि निखातमिव
प्रतिभाति
करता, वह (पुरुष) प्रतिभासमय महासामान्यके द्वारा
सकेगा ? (नहीं कर सकेगा) इससे ऐसा फलित हुआ कि जो आत्माको नहीं जानता वह
सबको नहीं जानता
और ज्ञेयका वस्तुरूपसे अन्यत्व होने पर भी प्रतिभास और प्रतिभास्यमानकर अपनी अवस्थामें
अन्योन्य मिलन होनेके कारण (ज्ञान और ज्ञेय, आत्माकी
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विषयभूताः येऽनन्तद्रव्यपर्यायास्तान् कथं जानाति, न कथमपि
सत्यात्मपरिज्ञानं भवतीति
(ज्ञान) [ न एव नित्यं भवति ] नित्य नहीं है, [न क्षायिकं ] क्षायिक नहीं है, [न एव
सर्वगतम् ] और सर्वगत नहीं है
तो नित्य नहि, क्षायिक नहि ने सर्वगत नहि ज्ञान ए
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मप्यसदनन्तद्रव्यक्षेत्रकालभावानाक्रान्तुमशक्तत्वात
संवेदनज्ञानभावनया केवलज्ञानं च जायते
जिनज्ञान जाणे युगपदे, महिमा अहो ए ज्ञाननो !
नित्य नहीं होता तथा कर्मोदयके कारण एक
में (-जानने में ) असमर्थ होनेके कारण सर्वगत नहीं है
जिनदेवका ज्ञान [युगपत् जानाति ] एक साथ जानता है [अहो हि ] अहो ! [ज्ञानस्य
माहात्म्यम् ] ज्ञानका माहात्म्य !
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व्यक्तित्वेनाभिव्यक्तस्वभावभासिक्षायिकभावं त्रैकाल्येन नित्यमेव विषमीकृतां सकलामपि
सर्वार्थसंभूतिमनन्तजातिप्रापितवैचित्र्यां परिच्छिन्ददक्रमसमाक्रान्तानन्तद्रव्यक्षेत्रकालभावतया
प्रकटीकृताद्भुतमाहात्म्यं सर्वगतमेव स्यात
परिज्ञानसामर्थ्याभावात्सर्वगतं न भवति
किया है ऐसा
अक्रमसे अनन्त द्रव्य -क्षेत्र -काल -भावको प्राप्त होनेसे जिसने अद्भुत माहात्म्य प्रगट किया
है ऐसा सर्वगत ही है
पुरुष ही सर्वज्ञ हो सकता है