विषय
भाषाकार कृत मंगलाचरण, देष भाषा लिखने की प्रतिज्ञा
भाषा वचनिका बनानेका प्रयोजन तथा लघुताके साथ प्रतिज्ञा व मंगल
कुन्दकुन्दस्वामि कृत भगवान को नमस्कार, तथा दर्शनमार्ग लिखने की सूचना
धर्म की जड़ सम्यग्दर्शन है, उसके बिना वन्दन की पात्रता भी नहीं
भाषावचनिका कृत दर्शन तथा धर्मका स्वरूप
दर्शन के भेद तथा भेदोंका विवेचन
दर्शन के उद्बोधक चिन्ह
सम्यक्त्वके आठ गुण, और आठ गुणोंका प्रशमादि चिन्होंमें अन्तर्भाव
सुदेव–गुरु तथा सम्यक्त्वके आठ अंग
सम्यग्दर्शनके बिना बाह्य चारित्र मोक्ष का कारण नहीं
सम्यक्त्वके बिना ज्ञान तथा तप भी कार्यकारी नहीं
सम्यक्त्वके बिना सर्व ही निष्फल है तथा उसके सद्भावमें सर्व ही सफल है
कर्मरज नाशक सम्यग्दर्शनकी शक्ति जल–प्रवाहके समान है
जो दर्शनादित्रयमें भ्रष्ट हैं वे कैसे हैं
भ्रष्ट पुरुष ही आप भ्रष्ट होकर धर्मधारकोंके निंदक होते हैं
जो जिनदर्शनके भ्रष्ट हैं वे मुलेस ही भ्रष्ट हैं और वे सिद्धोंको भी प्राप्त नहीं कर सकते
जिनदर्शन ही मोक्षमार्गका प्रधान साधक रूप मूल है
दर्शन भ्रष्ट होकर भी दर्शन धारकोंसे अपनी विनय चाहते हैं वे दुर्गतिके पात्र हैं
लज्जादिके भयसे दर्शन भ्रष्टका विनय करे वह भी उसीके समान
दर्शनकी
सम्यक्त्व है
गुणधारकोंके गुणानुवाद रूप हैं
मिथ्यादृष्टि है