Ashtprabhrut (Hindi).

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शीलपाहुड][३९३
जिनदर्शन निर्ग्रंथरूप तत्त्वारथ धारन,
धरि शील स्वभाव संवारनां आठ पाहुडका फल सुजय।।
छप्पन
सूनरजिनके वचन सार चारित व्रत पारन।
बोधजैन का जांनि आनका सरन निवारन,
भाव आत्मा बुद्ध मांनि भावन शिव कारन।
फुनि मोक्ष कर्मका नाश है लिंग सुधारन तजि कुनय।
दोहा
भई वचनिका यह जहाँ सुनो तास संक्षेप।
भव्यजीव संगति भली मेटै कुकरमलेप।। २।।

जयपुर पुर सुवस वसै तहाँ राज जगतेश।
लाके न्याय प्रतापतैं सुखी ढुढ्राहर देश।। ३।।

जैनधर्म जयवंत जग किछु जयपुरमैं लेश।
तामधि जिनमंदिर घणे तिनको भलो निवेश।। ४।।

तिनिमैं तेरापंथको मंदिर सुन्दर एव।
धर्मध्यान तामैं सदा जैनी करै सुसेव।। ५।।

पंडित तिनिमैं बहुत हैं मैं भी इक जयचंद।
र्प्रेया सबकै मन कियो करन वचनिका मंद।। ६।।

कुन्दकुन्द मुनिराजकृत प्राकृत गाथासार।
पाहुड अष्ट उदार लखि करी वचनिका तार।। ७।।
इहाँ जिते पंडित हुते तिनिनैं सोधी येह।
अक्षर अर्थ सु वांचि पढ़ि नहिं राखयो संदेह।। ८।।

तौऊ कछू प्रमादतैं बुद्धि मंद परभाव।
हीनाधिक कछु अर्थ ह्वै सोधो बुध सतभाव।। ९।।