बोधजैन का जांनि आनका सरन निवारन,
भाव आत्मा बुद्ध मांनि भावन शिव कारन।
भव्यजीव संगति भली मेटै कुकरमलेप।। २।।
जयपुर पुर सुवस वसै तहाँ राज जगतेश।
लाके न्याय प्रतापतैं सुखी ढुढ्राहर देश।। ३।।
जैनधर्म जयवंत जग किछु जयपुरमैं लेश।
तामधि जिनमंदिर घणे तिनको भलो निवेश।। ४।।
तिनिमैं तेरापंथको मंदिर सुन्दर एव।
धर्मध्यान तामैं सदा जैनी करै सुसेव।। ५।।
पंडित तिनिमैं बहुत हैं मैं भी इक जयचंद।
र्प्रेया सबकै मन कियो करन वचनिका मंद।। ६।।
कुन्दकुन्द मुनिराजकृत प्राकृत गाथासार।
पाहुड अष्ट उदार लखि करी वचनिका तार।। ७।।
अक्षर अर्थ सु वांचि पढ़ि नहिं राखयो संदेह।। ८।।
तौऊ कछू प्रमादतैं बुद्धि मंद परभाव।