परमागम प्रधान हैं। दर्शनप्राभृत, सूत्रप्राभृत, बोधप्राभृत, भाव –प्राभृत, मोक्षप्राभृत, लिंगप्राभृत,
और शीलप्राभृत– यह आठ प्राभृतोंका समुच्चय नाम अष्टप्राभृत है। श्री समयसारादि पाँचों
परमागम हमारे ट्रस्ट द्वारा
शाह कृत अष्टप्राभृतके– उक्त चारों परमागमोंके हरिगीत–पद्यानुवादोंके समान–मूलानुगामी,
भाववाही एवं सुमधुर गुजराती पद्यानुवाद सह यह छठवां संकरण अध्यात्मिकविद्याप्रेमी
जिज्ञासुओंके करकमलमें प्रस्तुत करते हुए हमें अतीव अनुभूत होता है।
गहन रहस्यों का उद्घाटन किया है। वास्तवमें इस शताव्दीमें अध्यात्मरुचि के नवयुगका
प्रर्वतनकर मुुमुुक्षु समाज पर उन्होंनें असाधारण असीम उपकार किया है। इस भौतिक
विषयविलासप्रचुर युगमें, भारतवर्ष एवं विदेषोंमें भी ज्ञान–वैराग्यभीने अध्यात्मतत्त्वके प्रचारका
प्रबल आन्दोलन प्रवर्तमान है वह पूज्य गुरुदेवश्रीके चमत्कारी प्रभावनायोगका ही सुफल है।
आधार पर इस संस्करणको तैयार किया गया है। इसमें मदन गंज निवासी पं श्री
महेन्द्रकुमारजी काव्यतीर्थ द्वारा, सहारनपुरके सेठ श्री जम्बुकुमारजी के शास्त्रभँडारसे प्राप्त
पण्डित श्री जयचन्द्रजी छाबड़ाकृत भाषावचनिकाकी हस्तलिखित प्रतिके आधार से, जो
भाषपरिर्वतन किया गया था वह दिया गया है। एवं पदटिप्पणमें आदरणीय विद्वद्रल श्री
हिम्मतलाल जेठालाल शाह द्वारा रचित गुजराती पद्यानुवाद–जो कि सोनगढ़के श्री कहानगुरु–
धर्मप्रभावनादर्शन
तदर्थ उन दोनों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।