Ashtprabhrut (Hindi).

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४४] [अष्टपाहुड
बारहवाँ ‘प्राणवाद’ नामक पूर्व है, इसमें आठ प्रकार वैद्यक तथा भूतादिककी व्याधिके
दूर करनेके मंत्रादिक तथा विष दूर करनेके उपाय और स्वरोदय आदिका वर्णन है, इसके
तेरह करोड़ पद हैं। तेरहवाँ ‘क्रियाविशाल’ नामक पूर्व है, इसमें संगीतशास्त्र, छंद,
अलंकारादिक तथा चौसठ कला, गर्भाधानादि चौरासी क्रिया, सम्यग्दर्शन आदि एकसौ आठ
क्रिया, देव वंदनादि पच्चीस क्रिया, नित्य–नैमित्तिक क्रिया इत्यादिका वर्णन है, इसके पद नौ
करोड़ हैं। चौदहवाँ ‘त्रिलोकबिंदुसार’ नामक पूर्व है, इसमें तीनलोकका स्वरूप और
बीजगणितका तथा मोक्षका स्वरूप तथा मोक्षकी कारणभूत क्रियाका स्वरूप ईत्यादिका वर्णन है,
इसके पद बारह करोड़ पचास लाख हैं। ऐसे चौदह पूर्व हैं, इनके सब पदोंका जोड़ पिच्याणवे
करोड़ पचास लाख है।

बारहवें अंगका पाँचवाँ भेद चूलिका है, इसके पाँच भेद हैं, इनके पद दो करोड़ नौ
लाख नवासी हजार दो सौ हैं। इसके प्रथम भेद जलगता चूलिकामें जलका स्तंभन करना,
जलमें गमन करना; अग्निगता चूलिकामें अग्नि स्तंभन करना, अग्निमें प्रवेश करना, अग्निका भक्षण
करना इत्यादिका कारणभूत मंत्र–तंत्रादिकका प्ररूपण है, इसके पद दो करोड़ नौ लाख नवासी
हजार दो सौ हैं। इतने इतने ही पद अन्य चार चूलिका के जानने। दूसरा भेद स्थलगता
चूलिका है, इसमें मेरु, पर्वत, भूमि इत्यादिमें प्रवेश करना, शीघ्र गमन करना इत्यादि क्रियाके
कारण मंत्र, तंत्र, तपश्चरणादिकका प्ररूपण है।

तीसरा भेद मायागता चूलिका है, इसमें मायामयी इन्द्रजाल विक्रियाके कारणभूत मंत्र,
तंत्र, तपश्चरणादिकका प्ररूपण है। चौथा भेद रूपगता चूलिका है, इसमें सिंह, हाथी, घोड़ा,
बैल, हिरण इत्यादि अनेक प्रकारके रूप बना लेनेके कारणभूत मंत्र, तंत्र, तपश्चरण आदिका
प्ररूपण है, तथा चित्राम, काष्ठलेपादिकका लक्षण वर्णन है और धातु रसायनका निरूपण है।
पाँचवाँ भेद आकाशगता चूलिका है, इसमें आकाशमें गमनादिकके कारणभूत मंत्र, तंत्र,
तंत्रादिकका प्ररूपण है। ऐसे बारहवाँ अंग है। इस प्रकारसे बारह अंगसूत्र हैं।
अंगबाह्य श्रुतके चौदह प्रकीर्णक हैं। प्रथम प्रकीर्णक सामायिक नामक है, इसमें नाम,
स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावके भेदसे छह प्रकार इत्यादि सामायिकका विशेषरूपसे वर्णन
है। दूसरा चतुर्विंशतिस्तव नामका प्रकीर्णक है, इसमें चौबीस तीर्थंकरोंकी महिमाका वर्णन है।
तीसरा वंदना नामका प्रकीर्णक है, उसमें एक तीर्थंकर के आश्रय वंदना स्तुतिका वर्णन है।
चौथा प्रतिक्रमण नामका प्रकीर्णक है, इसमें सात प्रकारके प्रतिक्रमणके वर्णन हैं।