Ashtprabhrut (Hindi). Gatha: 3-4 Sutra: Pahud.

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४६] [अष्टपाहुड
आगे कहते हैं कि जो सूत्रमें प्रवीण है वह संसार का नाश करता है––
सुत्तं हि जाणमाणो भवस्स भवणासणं च सो कुणदि।
सूइ जहा असुत्ता णासदि सुत्ते सहा णो वि।। ३।।
सूत्रे ज्ञायमानः भवस्य भवनाशनं च सः करोति।
सूची यथा असूत्रा नश्यति सूत्रेण सह नापि।।३।।
अर्थः––जो पुरुष सूत्र को जानने वाला है, प्रवीण है वह संसारमें जन्म होने का नाश
करता है। जैसे लोहे की सुई सूत्र (डोरे) के बिना हो तो नष्ट हो जाये और डोरा सहित हो
तो नष्ट नहीं हो यह दृष्टांत है।

भावार्थः––सूत्रका ज्ञाता हो वह संसारका नाश करता है, जैसे सुई डोरा सहित हो तो
दृष्टिगोचर होकर मिल जाये, कभी भी नष्ट न हो और डोरे के बिना हो तो नष्ट हो तो दिखे
नहीं, नष्ट हो जाये इसप्रकार जानना ।।३।।
आगे सुई के दृष्टान्त का दार्ष्टांत कहते हैं–––

पुरिसो वि जो ससुत्तो ण विणासइ सो गओ वि संसारे।
सच्चेदण पच्चक्खं णासदि तं सो अदिस्समाणो वि।। ४।।

पुरुषोऽपि यः ससूत्रः न विनश्यति स गतोऽपि संसारे।
सच्चेतनप्रत्यक्षेण नाशयति तं सः अदृश्यमानोऽपि।। ४।।

अर्थः––जैसे सूत्रसहित सूई नष्ट नहीं होती है वैसे ही जो पुरुष भी संसार में
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१ सुत्तम्मि । २ सूत्रहि पाठान्तर षट्पाहुड
सूत्रज्ञ जीव करे विनष्ट भवो तणा उत्पादने,
खोवाय सोय असूत्र, सोय ससूत्र नहि खोवाय छे। ३।
आत्माय तेम ससूत्र नहि खोवाय, हो भवमां भले,
अदृष्ट पण ते स्वानुभवप्रत्यक्षथी भवने हणे। ४।