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भवजलधि पार उतारने जिनवाणी है नौका भली;
आत्मज्ञ नाविक योग बिन वह नाव भी तारे नहीं ।
आत्मज्ञ नाविक योग बिन वह नाव भी तारे नहीं ।
इस कालमें शुद्धात्मविद नाविक महा दुष्प्राप्य है;
मम पुण्यराशि फली अहो ! गुरुक्हान नाविक आ मिले ।।
मम पुण्यराशि फली अहो ! गुरुक्हान नाविक आ मिले ।।
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अहो ! भक्त चिदात्माके, सीमंधर-वीर-कुन्दके !
बाह्यांतर विभवों तेरे, तारे नाव मुमुक्षुके ।।
बाह्यांतर विभवों तेरे, तारे नाव मुमुक्षुके ।।
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शीतल सुधाझरण चन्द्र ! तुझे नमूं मैं;
करुणा अकारण समुद्र ! तुझे नमूं मैं ।
करुणा अकारण समुद्र ! तुझे नमूं मैं ।
हे ज्ञानपोषक सुमेघ ! तुझे नमूं मैं;
इस दासके जीवनशिल्पि ! तुझे नमूं मैं ।।
इस दासके जीवनशिल्पि ! तुझे नमूं मैं ।।
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अहो ! उपकार जिनवरका, कुन्दका, ध्वनि दिव्यका ।
जिनके, कुन्दके, ध्वनिके दाता श्री गुरुक्हानका ।।